________________ अठारहयां कायस्थितिपद ] [361 [1365 उ.] गौतम ! जघन्य दो समय कम क्षुद्रभव ग्रहण जितने काल तक और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक (लगातार छद्मस्थ-आहारकरूप में रहता है)। (अर्थात्-) कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवपिणियों तक तथा क्षेत्रत: अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण (समझना चाहिए)। 1366. केवलियाहारए णं भंते ! केवलिग्राहारए त्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणं पुवकोडि / __[1366 प्र.] भगवन् ! केवली-पाहारक कितने काल तक केवली-ग्राहारक के रूप में रहता है ? [1366 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट देशोन कोटिपूर्व तक (केवली-पाहारक निरन्तर केवली-पाहारकरूप में रहता है)। 1367. प्रणाहारए णं भंते ! प्रणाहारए ति० पुच्छा ? गोयमा ! प्रणाहारए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा-छउमत्थअणाहारए य 1 केवलिप्रणाहारए य / [1367 प्र.) भगवन् ! अनाहारकजीव, अनाहारकरूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ? ___ [1367 उ ] गौतम ! अनाहारक दो प्रकार के होते हैं, यथा-(१) छद्मस्थ-अनाहारक और (2) केवली-अनाहारक / 1368. छउमत्थअणाहारए णं भंते ! 0 पुच्छा? गोयमा ! जहणणं एक्कं समयं, उक्कोसेंणं दो समया। [1368 प्र.] भगवन् ! छद्मस्थ-अनाहारक, छद्मस्थ-अनाहारक के रूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है ? [1368 उ.] गौतम ! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट दो समय तक (छद्मस्थअनाहारकरूप में रहता है।) 1369. केवलिप्रणाहारए णं भंते ! केवलिप्रणाहारए त्ति कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! केलिप्रणाहारए दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–सिद्धकेलिप्रणाहारए य 1 भवत्थकेलिप्रणाहारए य 2 / [1369 प्र.] भगवन् ! केवली-अनाहारक, केवली-अनाहारक के रूप में निरन्तर कितने काल तक रहता है? [1369 उ.] गौतम ! केवली-अनाहारक दो प्रकार के हैं, 1. सिद्ध केवली-अनाहारक और 2. भवस्थकेवली-अनाहारक / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org