________________ अठारहवा कायस्थिलिप 1378. संसारपरित्ते गं० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट देसूर्ण / [1378 प्र.] भगवन् ! संसारपरीत जीव कितने काल तक संसारपरीत-पर्याय में रहता है ? [1378 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गल-परावर्त तक (संसारपरीत-पर्याय में रहता है)। 1376. अपरित्ते णं० पुच्छा ? गोयमा ! अपरिते दुविहे पण्णत्ते / तं जहा–कायअपरित्ते य 1 संसारअपरित्ते य 2 / [1379 प्र.] भगवन् ! अपरीत जीव कितने काल तक अपरीत-पर्याय में रहता है ? [1376 उ.] गौतम ! अपरीत दो प्रकार के हैं / वह इस प्रकार-(१) काय-अपरीत और (2) संसार-अपरीत। 1380. काय अपरित्ते गं० पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकालो। [1380 प्र.] भगवन् ! काय-अपरीत निरन्तर कितने काल तक काय-अपरीत-पर्याय से युक्त रहता है ? [1380 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल तक (कायअपरीतपर्याय से युक्त रहता है)। 1381. संसारनपरित्ते पं० पुच्छा ? गोयमा ! संसारमपरित्ते दुविहे पण्णते / तं जहा-अणादीए वा अपज्जवसिए 1 अणादीए वा सपज्जवसिए 2 / [1381 प्र.] भगवन् ! संसार-अपरीत कितने काल तक संसार-अपरीत-पर्याय में रहता है ? [1381 उ.] गौतम ! संसार-अपरीत दो प्रकार के हैं / यथा-(१) अनादि-अपर्यवसित और (2) अनादि-सपर्यवसित / 1382. णोपरित्ते-णोअपरित्ते गं० पुच्छा ? गोयमा ! सादीए अपज्जवसिए / दारं 16 // [1382 प्र.] भगवन् ! नोपरीत-नोअपरीत कितने काल तक (लगातार) नोपरीत-नोअपरीतपर्याय में रहता है ? [1382 उ.] गौतम ! (वह) सादि-अपर्यवसित है। सोलहवाँ द्वार / / 16 // विवेचन–सोलहवा परीतद्वार-प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. 1376 से 1382) में द्विविध परीत व द्विविध अपरीत और नोपरीत-नोअपरीत जीवों के स्व-स्वपर्याय में अवस्थानकाल की प्ररूपणा की गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org