________________ एगूणवीसइमं सम्मत्तपयं उन्नीसवाँ सम्यक्त्वपद समुच्चय जीवों के विषय में दृष्टि की प्ररूपणा 1366. जीवा णं भंते ! किं सम्मट्टिी मिच्छट्ठिी सम्मामिच्छदिट्ठी ? गोयमा ! जीवा सम्मद्दिट्ठी वि मिच्छट्ठिी वि सम्मामिच्छट्ठिी वि / [1396 प्र. भगवन् ! जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्याटुष्टि हैं, अथवा सम्यमिथ्यादृष्टि हैं ? [1366 उ.] गौतम ! जीव सम्यग्दृष्टि भी हैं, मिथ्यादृष्टि भी हैं और सम्यमिथ्यादृष्टि भी हैं। विवेचन--समुच्चय जीवों के विषय में दृष्टि को प्ररूपणा--प्रस्तुत सूत्र में ममुच्चय जोवों में सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि पोर सम्यमिथ्यादृष्टि, ये तीनों ही दृष्टियाँ पाई जाती हैं। चौवीस दण्डकवर्ती जीवों और सिद्धों में सम्यक्त्वप्ररूपणा 1400. एवं रइया वि। [1400 ] इसी प्रकार नै रयिक जीवों में भी तीनों दृष्टियाँ होती हैं / 1401. असुरकुमारा वि एवं चेव जाव थणियकुमारा / [1401] असुरकुमारों से लेकर यावत् स्तनितकुमारों तक (के भवनवासी देव) भो इसो प्रकार (सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी और सम्यमिथ्यादृष्टि भी होते हैं)। 1402. पुढविक्काइयाणं पुच्छा / ___ गोयमा ! पुढविक्काइया णो सम्मविट्ठी, मिच्छट्ठिी, णो सम्मामिच्छद्दिट्ठी / एवं जाव वणकइकाइया। [1402 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं या सम्यगमिथ्यादृष्टि होते हैं ? [1402 उ.] गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव सम्यग्दृष्टि नहीं होते, वे मिथ्यादृष्टि होते हैं, सभ्यगमिथ्यादृष्टि नहीं होते / इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों (अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक एवं वनस्पति कायिकों) के सम्यक्त्व की प्ररूपणा समझ लेनी चाहिए। 1403. बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! बेइंदिया सम्मद्दिट्ठी वि मिच्छद्दिट्टो वि, णो सम्मामिच्छट्ठिी। एवं जाव चउरेंदिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org