Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 374] [प्रज्ञापनासूत्र [1403 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं, अथवा सम्यमिथ्या दृष्टि होते हैं ? [1403 उ.] गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं, किन्तु सम्यमिथ्यादृष्टि नहीं होते / इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय जीवों तक (प्ररूपणा करना चाहिए)। 1404. पंचेंदियतिरिक्खजोणिय-मणुस्सा वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया य सम्मट्ठिी वि मिच्छद्दिट्ठी वि सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि। [1404] पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव सम्यग्दृष्टि भी होते हैं, मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और मिश्र (सम्यगमिथ्या) दृष्टि भी होते हैं। 1405. सिद्धाणं पुच्छा। गोयमा ! सिद्धा णं सम्मद्दिट्ठी, णो मिच्छद्दिट्ठी को सम्मामिच्छद्दिट्ठी। ॥पण्णवणाए भगवतीए एगणवीसइमं सम्मत्तपयं समत्तं / / [1405 प्र.) भगवन् ! सिद्ध (मुक्त) जीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं या सम्यगमिथ्यादृष्टि होते हैं ? [1405 उ.] गौतम ! सिद्ध जीव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, वे न तो मिथ्यादृष्टि होते हैं और न सम्यमिथ्यादृष्टि होते हैं। विवेचन-चौवीस दण्डकवर्ती जीवों और सिद्धों में सम्यक्त्व की प्ररूपणा-प्रस्तुत छह सूत्रों में नैरयिकों से लेकर वैमानिक देव तक तथा सिद्धजीव सम्यग्दृष्टि होते हैं, मिथ्यादृष्टि होते हैं या मिश्रदष्टि ? इसका विचार किया गया है। निष्कर्ष-समुच्चयजीव नैरयिक, भवनवासी देव, तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय, मनुष्य, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में तीनों ही दृष्टियाँ पाई जाती हैं। विकलेन्द्रिय सम्यगमिथ्यादृष्टि नहीं होते, सिद्धजीव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं / पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। ___ एक ही जीव में एक साथ तीनों दृष्टियाँ नहीं होती-जिन जीवों में तीनों दृष्टियाँ बताई हैं, वे एक जीव में एक साथ एक समय में नहीं होती, परस्पर विरोधी होने के कारण एक जीव में, एक समय में, एक ही दृष्टि हो सकती है। अभिप्राय यह है कि जैसे-कोई जीव सम्यग्दष्टि होता है, कोई मिथ्यादृष्टि और कोई सम्यगमिथ्यादृष्टि होता है, उसी प्रकार कोई नारक, देव, मनुष्य या पंचेन्द्रिय. तिर्यञ्च सम्यग्दृष्टि होता है, तो कोई मिथ्यादृष्टि होता है, तथैव कोई सम्यगमिथ्यादृष्टि होता है। एक समय में एक जीव में एक ही दृष्टि होती है, तीनों दृष्टियाँ नहीं / ' // प्रज्ञापनासूत्र : उन्नीसवाँ सम्यक्त्वपद समाप्त / 00 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 393 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org