________________ वीसइमं : अंतकिरियापयं वीसवाँ : अन्तक्रियापद अर्थाधिकार 1406. रइय अंतकिरिया 1 अणंतरं 2 एगसमय 3 उध्वट्टा 4 / तित्थगर 5 चक्कि 6 बल 7 वासुदेव 8 मंडलिय 9 रयणा य 10 / / 213 / / दारगाहा / / द्वारगाथार्थ—अन्तक्रियासम्बन्धी 10 द्वार-(१) नैरयिकों को अन्तक्रिया, (2) अनन्तरागत जीव-अन्तक्रिया, (3) एक समय में अन्तक्रिया, (4) उद्वत्त जीवों की उत्पत्ति, (5) तीर्थकरद्वार, (6) चक्रवर्तीद्वार, (7) बलदेवद्वार, (8) वासुदेवद्वार, (6) माण्डलिकद्वार प्रौर (10) (चक्रवर्ती के सेनापति आदि) रत्नद्वार / यह द्वार-गाथा है // 213 // विवेचन---वीसवें पद में अन्तक्रिया आदि से सम्बन्धित दस द्वारों का निरूपण किया गया है। वे इस प्रकार हैं (1) अन्तक्रियाद्वार-इसमें नारक आदि चौवीस दण्डकों को अन्तक्रिया-सम्बन्धी प्ररूपणा है। (2) अनन्तरद्वार-इसमें अनन्तरागत एवं परम्परागत जीव की अन्तक्रिया से सम्बन्धित निरूपण है। (3) एकसमयद्वार-इसमें एक समय में जीवों की अन्तक्रिया से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर हैं। (4) उदवत्तद्वार---इसमें नैरयिकों से उद्वत्त होकर नैरयिक आदि में उत्पन्न होने तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के धर्मश्रवण, केवलज्ञानादि तथा शील, व्रत, गुणवत, प्रत्याख्यान एवं पौषधोपवास आदि के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर हैं। (5) तीर्थंकरद्वार-इसमें नैरयिकों से लेकर सर्वार्थसिद्ध देवों से उद्धृत्त जीवों को तीर्थकरत्व प्राप्त होने के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर हैं। (6) चनिद्वार- इसमें चौवीस दण्डकों से उद्वृत्त जीवों को चक्रवत्तित्व-प्राप्ति होने के सम्बन्ध में चर्चा है। (7) बलदेवद्वार--इसमें बलदेवत्वप्राप्ति सम्बन्धी चर्चा है / (8) वासुदेवद्वार—इसमें वासुदेवत्वप्राप्ति सम्बन्धी चर्चा है / (6) माण्डलिकद्वार-इसमें माण्डलिकत्वप्राप्ति सम्बन्धी चर्चा है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org