________________ 358] [प्रज्ञापनासून [1357 प्र.] भगवन् ! केवलदर्शनी कितने काल तक केवलदर्शनीरूप में रहता है ? [1357 उ.] गौतम ! केवलदर्शनी सादि-अपर्यवसित होता है / ग्यारहवाँ द्वार / / 11 / / बारहवाँ संयतद्वार 1358. संजए णं भंते ! संजते ति० पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं एषकं समयं, उक्कोसणं देसूर्ण पुवकोडि / [1358 प्र.] भगवन् ! संयत कितने काल तक संयतरूप में रहता है ? [1358 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट देशोन करोड़ पूर्व तक संयतरूप में रहता है। 1356. असंजए ज भते ! असंजए त्ति० पुच्छा ? गोयमा ! असंजए तिविहे पण्णत्ते / तं जहा--प्रणादीए वा अपज्जवसिए 1 प्रणादीए वा सपज्जवसिए 2 सादीए वा सपज्जवसिए 3 / तत्थ पंजे से सादीए सपज्जवसिए से जहण्णणं अंतोमुत्तं, उस्कोसेणं प्रणतं कालं, अणंतायो उस्सप्पिणि-प्रोसप्पिणीओ कालतो, खेतम्रो अवड्ढं पोग्गलपरिय देसूर्ण। [1359 प्र.] भगवन् ! असंयत कितने काल तक असंयतरूप में रहता है ? [1359 उ.] गौतम ! असंयत तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार--१. अनादि दि-सपर्यवसित और 3. सादि-सपर्यवसित / उनमें से जो सादि-सपर्यवसित है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, (अर्थात्) काल की अपेक्षा से—अनन्त उत्सर्पिणी-अवसपिणियों तक तथा क्षेत्र की अपेक्षा से---देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त तक (वह असंयतपर्याय में रहता है)। 1360. संजयासंजए जहणेणं अंतोमुत्त, उक्कोसेणं देसूणं पुवकोडि / [1360] संयतासंयत जघन्य अन्तमुहूर्त तक और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक (संयतासंयतरूप में रहता है)। 1361. जोसंजए णोप्रसंजए जोसंजयासंजए णं० पुच्छा ? गोयमा ! सादीए प्रपज्जवसिए / दारं 12 / / [1361 प्र.] भगवन् ! नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयत कितने काल तक नोसंयत, नोअसंयत, नोसंयतासंयतरूप में बना रहता है ? {1361 उ.] गौतम ! वह सादि-अपर्यवसित है / बारहवाँ द्वार / / 12 / / तेरहवाँ उपयोगद्वार 1362. सागारोवउत्ते णं भंते ! 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहणण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुतं / अपयवसित. 2. अनादि-सपयवासत पार 3. सादि-सपथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org