________________ 338] [प्रज्ञापनासून 1305. बादरे गं भंते ! बादरे त्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, असंखेज्जाम्रो उसप्पिणिप्रोसप्पिणीयो कालतो, खेतम्रो अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग। [1305 प्र.] भगवन् ! बादर जीव, बादर जीव के रूप में (लगातार) कितने काल तक [1305 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक (अर्थात्) कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी तक, क्षेत्रतः अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रमाण (बादर जीव के रूप में लगातार रहता है / ) 1306. बादरपुढविषकाइए णं भंते ! बाबरपुढविषकाइए त्ति पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडोनो। [1306 प्र.] भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक, बादर पृथ्वीकायिक रूप में कितने काल तक (लगातार) रहता है ? [1306 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम तक (बादर पृथ्वीकायिक रूप में लगातार रहता है / ) 1307. एवं बादरप्राउक्काइए वि जाव बादरवाउक्काइए वि। [1307] इसी प्रकार बादर अप्कायिक एवं बादर वायुकायिक (के विषय में भी समझना चाहिए।) 1308. बादरवणस्सइकाइए गं भंते ! बादरवणस्सइकाइए त्ति पुच्छा? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं प्रसंखेज्जं कालं जाव खेत्तनो अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं / [1308 प्र.] भगवन् ! बादर वनस्पतिकायिक बादर वनस्पतिकायिक के रूप में कितने काल तक रहता है ? [1308 उ.गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल तक, (अर्थात-) कालत:-असंख्यात उत्सपिणी-अवसपिणियों तक, क्षेत्रत: अंगुल के असंख्यातवें भाग-प्रमाण (बादर वनस्पतिकायिक के रूप में रहता है / ) 1306. पत्तेयसरीरबादरवणफइकाइए णं भंते ! 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीयो। [1309 प्र.] भगवन् ! प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक (उक्त स्वपर्याय में कितने काल तक लगातार रहता है ?) [1309 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक (वह प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिकरूप में बना रहता है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org