________________ अठारहवां कास्थितिपद ] [ 339 1310. जिगोए णं भंते ! णिगोए त्ति कालो केचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमहत्तं, उक्कोसेणं प्रणतं काल, प्रणंतानो उस्सप्पिणि-श्रोसप्पिणीम्रो कालो, खेत्तनो अड्डाइज्जा पोग्गलपरियट्टा / [1310 प्र.] भगवन् ! निगोद, निगोद के रूप में कितने काल तक (लगातार) रहता है ? [1310 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक, उत्कृष्ट अनन्तकाल तक, कालतः अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणियों तक, क्षेत्रत: ढाई पुद्गलपरिवर्त्त तक (वह निगोदपर्याय में बना रहता है / ) 1311. बादरनिगोदे णं भंते ! बादर० पुच्छा? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीनो। [1311 प्र.] भगवन् ! बादर निगोद, बादर निगोद के रूप में कितने काल तक रहता है ? [1311 उ.] गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोटाकोटी सागरोपम तक बादर निगोद के रूप में बना रहता है। 1312. बादरतसकाइए णं भंते ! बादरतसकाइए त्ति कालमो केवचिरं होइ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमभइयाई / [1312 प्र.] भगवन् ! बादर त्रसकायिक बादर प्रसकायिक के रूप में कितने काल तक रहता है ? [1312 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम तक (वह बादर त्रसकायिक-पर्याय वाला बना रहता है।) 1313. एतेसि चेव अपज्जत्तगा सम्वे वि जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / _ [1313] इन (पूर्वोक्त) सभी (बादर जीवों) के अपर्याप्तक जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तमुहूर्त काल तक अपने-अपने पूर्व पर्यायों में बने रहते हैं / 1314. चादरपज्जत्तए णं भंते ! बादरपज्जत्त० पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेमं / [1314 प्र.] भगवन् ! बादर पर्याप्तक, बादर पर्याप्तक के रूप में कितने काल तक बना रहता है ? [1314 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट कुछ अधिक शतसागरोपमपृथक्त्व तक (बादर पर्याप्तक के रूप में रहता है / ) 1315. बादरपुढविक्काइयपज्जत्तए णं भंते ! बादर० पुच्छा ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई। [1315 प्र.] भगवन् ! बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक कितने काल तक बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक रूप में रहता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org