________________ 344] [ प्रज्ञापनासूत्र अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालं, अणंताओ उस्सप्पिणि-प्रोसप्पिणीप्रो कालो, खेत्तो अवड्ढे पोग्गलपरियट देसूणं। [1326 प्र.] भगवन् ! सवेद जीव कितने काल तक सवेदरूप में रहता है ? . [1326 उ.] गौतम ! सवेद जीव तीन प्रकार के कहे गए हैं। यथा-(१) अनादि-अनन्त, (2) अनादि-सान्त और (3) सादि-सान्त / उनमें से जो सादि-सान्त है, वह जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः अनन्तकाल तक (निरन्तर सवेदकपर्याय से युक्त रहता है / ) (अर्थात्उत्कष्टतः) काल से अनन्त उत्सपिणी-अवसपिणियों तक तथा क्षेत्र की अपेक्षा से देशोन अपार्द्धपुद्गलपरावर्त तक (जीव सवेद रहता है / ) 1327. इत्थिवेदे णं भंते ! इत्यिवेदे त्ति कालतो केवचिरं होति ? गोयमा ! एगेणं प्रादेसेणं जहण्णेणं एक्के समयं उक्कोसेणं दसुत्तरं पलिप्रोवमसतं पुवकोडिपृहुत्तमभहियं 1 एगेणं प्रादेसेणं जहणणं एग समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पलिग्रोवमाई पुवकोडिपुत्तमम्मइयाइं 2 एगेणं प्रादेसणं जहण्णेणं एग समयं उक्कोसेणं चोइस पलिमोवमाइं पुष्यकोडिपुहुत्तमम्भइयाई 3 एगेणं प्रादेसेणं जहण्णेणं एग समयं उक्कोसेणं पलिग्रोवमसयं पुवकोडिपुहुत्तमभइयं 4 एगेणं आदेसेणं जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं पलिग्रोवमहत्तं पुन्यकोडिपुत्तमम्मइयं 5 / [1327 प्र.] भगवन् ! स्त्रीवेदक जीव स्त्रीवेदकरूप में कितने काल तक रहता है ? [1327 उ.] गौतम ! १-एक अपेक्षा (आदेश) से (वह) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक, २-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक, ३-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक, ४-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक सौ पल्योपम तक, ५-एक अपेक्षा से जघन्य एक समय और उत्कृ कोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक स्त्रीवेदी स्त्रीवेदीपर्याय में लगातार रहता है। 1328. पुरिसवेदे णं भंते ! पुरिसवेदे ति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहुत्तं सातिरेगं / [1328 प्र.] भगवन् ! पुरुषवेदक जीव पुरुषवेदकरूप में (लगातार) कितने काल तक रहता है ? [1328 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व तक (वह पुरुषवेदकरूप में रहता है / ) / 1326. नपुसगवेदे गं भंते ! णसगवेदे ति० पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं एक्कं समय, उक्कोसेणं वणप्फइकालो। [1329 प्र.] भगवन् ! नपुसकवेदक (लगातार) कितने काल तक नपुंसकवेदकपर्याय से युक्त बना रहता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org