________________ सत्तरसम लेस्सापयं : चउत्थो उद्देसओ ___सत्तरहवां लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक चतुर्थ उद्देशक के अधिकारों की गाथा 1218. परिणाम 1 वण्ण 2 रस 3 गंध 4 सुद्ध 5 अपसस्थ 6 संकिलिठ्ठण्हा 7-8 / गति 6 परिणाम 10 पदेसावगाह 11-12 वग्गण 13 ठाणाणमप्पहुं 14-15 // 210 // [1218 चतुर्थ उद्देशक की अधिकार गाथा का अर्थ--] (1) परिणाम, (2) वर्ण, 1 (3) रस, (4) गन्ध, (5) शुद्ध (अशुद्ध), (6) (प्रशस्त-) अप्रशस्त, (7) संक्लिष्ट (-असंक्लिष्ट), (8) उष्ण (शीत), (8) गति, (10) परिणाम, (11) प्रदेश (-प्ररूपणा), (12) अवगाह, (13) वर्गणा, (14) स्थान (-प्ररूपणा) और अल्पबहुत्व, (ये पन्द्रह अधिकार चतुर्थ उद्देशक में कहे जाएँगे) / / 210 / / लेश्या के छह प्रकार 1216. कति णं भंते ! लेस्साप्रो पण्णत्तायो ? गोयमा ! छल्लेसानो पण्णत्तायो / तं जहा–कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। [1219 प्र.] भगवन् ! लेश्याएँ कितनी हैं ? [1216 उ.] गौतम ! लेश्याएँ छह हैं / वे इस प्रकार-कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। प्रथम परिणामाधिकार-- 1220. से गूणं भंते ! कण्हलेस्सा गोललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमति ? हता गोयमा ! कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो-भज्जो परिणमति / से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति कण्हलेस्सा णोललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति? गोयमा ! से जहाणामए खीरे दूसिं पप्प सुद्ध वा वस्थे रागं पप्प तारूवत्ताए तावण्णत्ताए तागंधत्ताए तारसत्ताए ताफासत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमति / सेएणठेणं गोयमा! एवं वच्चइ कण्हलेस्सा णीललेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो भज्जो परिणमति। [1220 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या नीललेश्या को प्राप्त हो कर उसी रूप में, उसी के वर्णरूप में, उसी के गन्धरूप में, उसी के रसरूप में, उसी के स्पर्शरूप में पुनः पुनः परिणत होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org