________________ अठारहवाँ कायस्थितिपद ] [331 [1271 उ.] गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के कहे गये हैं--१. अनादि-अनन्त और 2. अनादि-सान्त / 1272. एगिदिए णं भंते ! एगिदिए ति कालो केवचिरं होइ ? गोयमा! जहणणेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं अणंतं कालवणप्फइकालो। [1272 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव एकेन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? [1272 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पतिकालपर्यन्त (एकेन्द्रिय रूप में रहता है।) 1273. बेइंदिए गं भंते ! बेइंदिए त्ति कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसणं संखेज्जं कालं। [1273 प्र. भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव द्वीन्द्रियरूप में कितने काल तक रहता है ? [1273 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक (द्वीन्द्रियरूप में रहता है।) 1274. एवं तेइंदिय-चरिदिए वि। [1274] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय को त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियरूप में अवस्थिति के विषय में (समझना चाहिए / ) 1275. पंचेंदिए णं भंते ! पं.दिए त्ति कालतो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं सातिरेगं / [1275 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय के रूप में कितने काल तक रहता है ? [1275 उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः सहस्रसागरोपम से कुछ अधिक (काल तक पंचेन्द्रिय रूप में रहता है।) 1276. अणिदिए णं 0 पुच्छा। गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। [1276 प्र.] भगवन् ! अनिन्द्रिय (सिद्ध) जीव कितने काल तक अनिन्द्रिय बना रहता है ? [1276 उ.] गौतम ! (अनिन्द्रिय) सादि-अनन्त (काल तक अनिन्द्रियरूप में रहता है / ) 1277. सइंदियनपज्जत्तए णं भंते ! * पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णण बि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [1277 प्र.] भगवन् ! सेन्द्रिय-अपर्याप्तक कितने काल तक सेन्द्रिय-अपर्याप्तरूप में रहता है ? [1277 उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः भी और उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त तक (सेन्द्रियअपर्याप्तरूप में रहता है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org