________________ 332] [ प्रज्ञापनासून 1278. एवं जाव पंचेंदियनपज्जत्तए। [1278] इसी प्रकार (एकेन्द्रिय-अपर्याप्तक से लेकर) यावत् पंचेन्द्रिय-अपर्याप्तक तक (अपर्याप्तरूप में अवस्थिति) के विषय में (समझना चाहिए।) 1276. सइंदियपज्जत्तए णं भंते ! सइंदियपज्जत्तए ति कालओ केचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं / [1279 प्र.] भगवन् ! सेन्द्रिय-पर्याप्तक, सेन्द्रिय-पर्याप्तरूप में कितने काल तक रहता है ? [1279 उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अन्तर्मुहुर्त तक तथा उत्कृष्टतः सौ पृथक्त्व सागरोपम से कुछ अधिक काल तक (सेन्द्रिय पर्याप्त जीव सेन्द्रिय-पर्याप्त बना रहता है।) 1280. एगिदियपज्जत्तए णं भंते ! * पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाई वाससहस्साई। [1280 प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-पर्याप्तक कितने काल तक एकेन्द्रिय-पर्याप्तरूप में बना रहता है ? [1280 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्षों तक (वह एकेन्द्रिय-पर्याप्तक रूप में बना रहता है।) 1281. बेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! बेइंदियपज्जत्तए ति 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वासाई। [1281 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय-पर्याप्तक, द्वीन्द्रिय-पर्याप्त रूप में कितने काल तक रहता है ? [1281 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात वर्षों तक (द्वीन्द्रिय-पर्याप्त रूप में रहता है।) 1282. तेइंदियपज्जत्तए णं भंते ! तेइंदियपज्जत्तए ति 0 पुच्छा ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं रातिदियाई। [1282 प्र.] भगवन् ! त्रीन्द्रिय-पर्याप्तक, त्रीन्द्रिय-पर्याप्तरूप में कितने काल तक बना रहता है ? [1282 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात रात्रि-दिन तक (त्रीन्द्रिय-पर्याप्तरूप में रहता है / ) 1283. चरिदियपज्जत्तए णं भंते ! * पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जा मासा / [1283 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय-पर्याप्तक, चतुरिन्द्रिय-पर्याप्तकरूप में कितने काल तक रहता है ? [1283 उ.] गौतम ! (वह) जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यात मास तक (चतुरिन्द्रिय-पर्याप्तरूप में बना रहता है।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org