________________ सत्तरहवा लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक ] [ 311 ठाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा पम्हलेस्साठाणा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा सुक्कलेस्सठाणा दवट्टयाए असंखेज्जगुणा। पदेसट्टयाएसम्वत्थावा जहष्णगा काउलेस्साठाणा पएसट्टयाए, जहण्णमा णोललेस्सठाणा पएसट्टयाए प्रसंखेज्जगुणा, जहण्णगा कण्हलेस्साठाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा तेउलेस्सठाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा पम्हलेस्सठाणा पएसद्वयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णगा सुक्कलेस्साठाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा; दध्वट्टपदेसट्टयाए-सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्टाणा दग्वट्ठयाए, जहण्णगा पीललेस्सटाणा दव्वयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेस्सट्ठाणा तेउलेस्सटाणा पम्हलेस्सदाणा, जहण्णगा सुक्कलेस्सट्टाणा दन्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, जहण्णएहितो सुक्कलेस्सटाणेहितो दट्टयाए जहण्णगा काउलेस्सट्टाणा पदेसट्टयाए अणंतगुणा, जहण्णगा णोललेस्सटाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं जाव सुक्कलेस्सट्टाणा / [1247 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या के जघन्य स्थानों में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य तथा प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1247 उ.] गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा से, सबसे थोड़े जघन्य कापोतलेश्यास्थान हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगणे हैं. (उनसे) तेजोलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपे गुणे हैं, (उनसे) पद्मलेश्या के जधन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यात गुणे हैं, (उनसे) शुक्ललेश्या के जघन्यस्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से---सबसे थोड़े कापोतलेश्या के जघन्य स्थान हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगूणे हैं, (उनकी अपेक्षा) तेजोलेश्या के जघन्यस्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) पद्मलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से--सबसे कम कापोतलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) जघन्य कृष्णलेश्यास्थान, तेजोलेश्यास्थान, पद्मलेश्यास्थान तथा इसी प्रकार शुक्ललेश्यास्थान द्रव्य की अपेक्षा श.) असंख्यातगूणे हैं / द्रव्य की अपेक्षा से शुक्ललेश्या के जघन्य स्थानों से, कापोतलेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणे हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या एवं शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। 1248. एतेसि णं भंते ! कण्हल स्सटाणाणं जाव सुक्कलेस्सटाणाण य उक्कोसगाणं दम्वद्वयाए पएसद्वयाए दध्वट्ठपएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा ! सम्वत्थोवा उक्कोसगा काउलेस्सटाणा दग्वट्ठयाए, उक्कोसगा पीललेस्सटाणा दन्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं जहेव जहण्णगा तहेव उक्कोसगा वि, णवरं उक्कोस त्ति अभिलावो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org