Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 312 ] [प्रज्ञापनासूत्र [1248 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या के उत्कृष्ट स्थानों (से लेकर) यावत् शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थानों में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1248 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े कापोतलेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं / (उनसे) नीललेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य को अपेक्षा से असंख्यागुण हैं। इसी प्रकार जघन्यस्थानों के अल्पबहुत्व की तरह उत्कृष्ट स्थानों का भी अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि 'जघन्य' शब्द के स्थान में (यहाँ) 'उत्कृष्ट' शब्द कहना चाहिए / 1246. एतेसि णं भंते ! कण्हलेस्सट्टाणाणं जाव सुक्कलेस्सटाणाण य जहण्णुक्कोसगाणं दन्वट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वटुपएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा ! सम्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्टाणा दवट्टयाए, जहण्णया गोललेस्सटाणा दवटुयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेस्सटाणा तेउलेस्सट्ठाणा पम्हलेस्सटाणा, जहण्णगा सुक्कलेसटाणा दवट्टयाए असंखेज्जगुणा। जहण्णएहितो सुक्कलेस्सट्टाणेहितो दव्वट्ठयाए उक्कोसा काउलेस्सटाणा दम्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, उक्कोसा नीललेसटाणा दव्वट्ठयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसटाणा तेउलेसटाणा पम्हलेसटाणा, उक्कोसा सुक्कलेस्सटाणा दव्वट्टयाए असंखेज्जगुणा। पदेसट्टयाएसम्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सटाणा पएसट्टयाए, जहण्णगा जोललेसटाणा पएसट्टयाए प्रसंखेज्जगुणा, एवं जहेव दवट्टयाए तहेव पएसट्टयाए वि भाणियन्वं, गवरं पएसट्टयाए त्ति अभिलावविसेसो / दवट्ठपएसट्टयाए-सव्वत्थोवा जहण्णगा काउलेस्सट्टाणा दवट्ठयाए, जहण्णगा णोललेसटाणा दवट्ठयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसट्टाणा तेउलेसट्टाणा पम्हलेसट्टाणा, जहण्णया सुक्कलेसट्ठाणा दवट्ठयाए असखेज्जगुणा / जहण्णएहितो सुक्कलेसटाणेहितो दवट्ठयाए उक्कोसा काउलेसटाणा दवट्ठयाए प्रसंखेज्जगुणा, उक्कोसा णोललेसटाणा दन्वट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसटाणा तेउलेसटाणा पम्हलेसट्टाणा, उक्कोसगा सुक्कलेसटाणा दव्वट्ठयाए प्रसंखेज्जगुणा / उक्कोसएहितो सुक्कलेसट्ठाणेहितो दवट्टयाए जहण्णगा काउलेसटाणा पदेसट्टयाए अणंतगुणा, जहण्णगा णोललेसटाणा पएसठ्ठयाए प्रसंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसटाणा तेउलेसट्टाणा पम्हलेसट्टाणा, जहण्णगा सुक्कलेसटाणा असंखेज्जगुणा, जहण्णहितो सुक्कलेसटाणेहितो पदेसट्टयाए उक्कोसा काउलेसट्ठाणा पदेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, उकोसया गोललेसट्टाणा पवेसट्टयाए असंखेज्जगुणा, एवं कण्हलेसटाणा तेउलेसटाणा पम्हलेसटाणा, उषकोसया सुक्कलेसटाणा पएसट्टयाए असंखेज्जगुणा / // पण्णवणाए भगवतीए लेस्सापदे चउत्थो उद्देसो समत्तो / / [1249 प्र. भगवन् ! इन कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या के जघन्य और उत्कृष्ट स्थानों में द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा द्रव्य और प्रदेशों (उभय) की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1246 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े द्रव्य की अपेक्षा से कापोतलेश्या के जघन्य स्थान हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org