Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 320] [प्रज्ञापनासूत्र [12] हेमवय-एरण्णवयनकम्मभूमयमणूसाणं मणसीण य कति लेस्सानो पणत्तायो ? गोयमा! चत्तारि / तं जहा—कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। [1257-12 प्र.] भगवन् ! हैमवत और ऐरण्यवत अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [1257-12 उ.] गौतम ! (इन दोनों क्षेत्रों के पुरुषों और स्त्रियों में) चार लेश्याएँ होती हैं / वे इस प्रकार-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या / [13] हरिवास-रम्मयप्रकम्मभूमयमणुस्साणं मणूसोण य पुच्छा ? गोयमा ! चत्तारि / तं जहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। [1257-13 प्र.] भगवन् ! हरिवर्ष और रम्यकवर्ष के अकर्मभूमिज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [1257-13 उ.] गौतम ! (इन दोनों क्षेत्रों के अकर्मभूमिज पुरुषों और स्त्रियों में) चार लेश्याएँ होती हैं / वे इस प्रकार-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या / [14] देवकुरूत्तरकुरुप्रकम्मभूमयमणुस्साणं एवं चेव / [1257-14] देवकुरु और उत्तरकुरु क्षेत्र के प्रकर्मभूमिज मनुष्यों में भी इसी प्रकार (चार लेश्याएँ जाननी चाहिए।) [15] एतेसि चेव मणूसोणं एवं चेव / [1257-15] इन (पूर्वोक्त दोनों क्षेत्रों) को मनुष्यस्त्रियों में भी इसी प्रकार (चार लेश्याएँ समझनी चाहिए।) [16] धायइसंडपुरिमद्धे एवं चेव, पच्छिमद्ध वि / एवं पुक्खरद्ध वि भाणियव्वं / ' (1257-16] धातकीषण्ड के पूर्वार्द्ध में तथा पश्चिमार्द्ध में भी मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में इसी प्रकार (चार लेश्याएँ) कहनी चाहिए / इसी प्रकार पुष्करार्द्ध द्वीप में भी कहना चाहिए। विवेचन--विभिन्न क्षेत्रीय मनुष्यों में लेश्याओं की प्ररूपणा-प्रस्तुत सूत्र (1257/16 तक) में सामान्यमनुष्यों से लेकर सभी क्षेत्रों के सभी प्रकार के कर्मभूमिज और अकर्मभूमिज मनुष्यों तथा वहाँ की स्त्रियों में लेश्याओं की प्ररूपणा को गई है। निष्कर्ष प्रत्येक क्षेत्र के कर्मभूमिज मनुष्यों और स्त्रियों में छह लेश्याएँ और अकर्मभूमिक मनुष्यों और स्त्रियों में चार लेश्याएँ पाई जाती हैं। अकर्मभूमिक नर-नारियों में पद्म और शुक्ललेश्या नहीं होती। 1. ग्रन्थाग्रम् 5500 / 2. पण्णवणासुतं (मूलपाठ) भा. 1, पृ. 301-302 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org