________________ सत्तरहवां लेश्यापद : छठा उद्देशक ] [ 319 [5] भरहेरवयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साम्रो पण्णताओ? गोयमा ! छ / तं जहा—कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। [1257-5 प्र.] भगवन् ! भरतक्षेत्र और ऐरवतक्षेत्र के मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ पाई जाती हैं ? [1257-5 उ.] गौतम ! (उनमें भी) छह (लश्याएँ होती हैं) यथा--कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या / [6] एवं मणस्सीण वि। [1257-6 / इसी प्रकार (इन क्षेत्रों की) मनुष्यस्त्रियों में भी (छह लेश्याओं की प्ररूपणा करनी चाहिए।) [7] पुन्वविदेह-प्रवरविदेहकम्मभूमयमणूसाणं भंते ! कति लेस्साओ पण्णताओ? गोयमा ! छ लेसानो / तं जहा–कण्हलेस्सा जाब सुक्कलेस्सा। [1257-7 प्र. भगवन ! पूर्वविदेह और अपरविदेह के कर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लश्याएँ होती हैं ? [1257-7 उ. गौतम ! (इन दोनों क्षेत्रों के मनुष्यों में) छह लेश्याएँ कही गई हैंकृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या / [8] एवं मणूसीण वि। [1257-8] इसी प्रकार (इन दोनों क्षेत्रों की) मनुष्यस्त्रियों में भी (छह लेश्याएँ समझनी चाहिए।) [6] प्रकम्मभूमयमणूसाणं पुच्छा ? गोयमा ! चत्तारि लेस्सानो पण्णत्तानो / तं जहा–कण्हलेस्सा जाब तेउलेस्सा। [1257-9 प्र.] भगवन् ! अकर्मभूमिज मनुष्यों में कितनी लेश्याएँ कही गई हैं ? [1257-9. उ.] गौतम ! (उनमें) चार लेश्याएँ कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं-कृष्णलेश्या यावत् तेजोलेश्या / [10] एवं प्रकम्मभूमयमणूसीण वि / [1257-10] इसी प्रकार अकर्मभूमिज मनुष्यस्त्रियों में भी (चार लेश्याएँ कहनी चाहिए।) [11] एवं अंतरदीवयमणूसाणं मणूसीण वि / [1257-11] इसी प्रकार अन्तरद्वीपज मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों में भी ( चार लेश्याएँ समझनी चाहिए।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org