________________ अठारहवां कास्थितिपद] [ 327 [1261 उ.] गौतम ! (नारक) जघन्य दस हजार वर्ष तक, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम तक (नारकपर्याय से युक्त रहता है / ) 1262. [1] तिरिक्खजोणिए णं भंते ! लिरिक्खजोणिए त्ति कालरो केचिरं होइ ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं अणंतं काल, अणंताप्रो उस्सपिणि प्रोसप्पिणीओ कालतो, खेत्तमो अणंता लोगा, असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा, ते गं पोग्गलपरियट्टा प्रावलियाए असंखेज्जतिभागो। [1262-1 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक (नर) कितने काल तक तिर्यग्योनिकत्व रूप में [1262-1 उ.] गौतम ! (तिर्यञ्च नर) जघन्य अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल तक तिर्यञ्चरूप में रहता है। कालत: अनन्त उत्सपिणी-अवपिणी काल तक, क्षेत्रतः अनन्त लोक, असंख्यात पुद्गलपरावर्तनों तक (तिर्यञ्च तिर्यञ्च, ही बना रहता है / ) वे पुद्गलपरावर्तन पावलिका के असंख्यातवें भाग (जितने समझने चाहिए / ) [2] तिरिक्खजोणिणो णं भंते ! तिरिक्खजोणिणोत्ति कालमो केचिरं होइ? गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिणि पलिग्रोवमाई पुवकोडिपत्तप्रभहियाई। | 1262-2 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चनी कितने काल तक तिर्यञ्चनी रूप में रहती है / [1226-2 उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः पृथक्त्वकोटि पूर्व अधिक तीन पल्योपम तक (तिर्यञ्चनी रहती है।) 1263. [1] एवं मणूसे वि / [1263-1] मनुष्य (नर) को कायस्थिति के विषय में भी (इसी प्रकार समझना चाहिए / ) [2] मणूसी वि एवं चेव / [1263-2] इसी प्रकार मानुषी (नारी) की कायस्थिति के विषय में (समझना चाहिए / ) 1264. [1] देवे णं भंते ! देवे त्ति कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहेब जेरइए (सु. 1261) / [1264-1 प्र.] भगवन् ! देव कितने काल तक देव बना रहता है ? [1264-1 उ.] गौतम ! जैसा (सू. 1261 में) नारक के विषय में कहा, वैसा ही देव (को कायस्थिति) के विषय में (कहना चाहिए / ) [2] देवी णं भंते ! देवीति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं बस वाससहस्साई, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिनोवमाई। [1264-2 प्र.] भगवन् ! देवी, देवी के पर्याय में कितने काल तक रहती है ? [1264-2 उ.] गौतम ! जघन्यत: दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्टतः पचपन पल्योपम तक (देवीरूप में कायम रहती है / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org