________________ 328] [प्रज्ञापनासूत्र 1265. सिद्ध गं भंते ! सिद्ध त्ति कालो केचिरं होइ ? गोयमा! सादोए अपज्जवसिए। [1265 प्र.] भगवन् ! सिद्ध जीव कितने काल तक सिद्धपर्याय से युक्त रहता है ? [1265 उ.] गौतम ! सिद्धजीव सादि-अनन्त होता है (अर्थात्-सिद्धपर्याय सादि है, किन्तु अन्तरहित है।) 1266. [1] गैरइय-अपज्जत्तए णं भंते ! घरइय-अपज्जत्तए ति कालओ केचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं / [1266-1 प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में कितने काल तक रहता है ? 1266-1 उ.] गौतम ! अपर्याप्तक नारक जीव अपर्याप्तक नारकपर्याय में जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त तक रहता है / [2] एवं जाव देवी अपज्जत्तिया। [1266-2] इसी प्रकार (तिर्यञ्चयोनिक-तिर्यञ्चनी, मनुष्य-मानुषी, देव और) यावत् देवी को अपर्याप्त अवस्था अन्तर्मुहूर्त तक ही रहती है / 1267. रइयपज्जत्तए णं भंते ! णेरइयपज्जत्तए ति कालमो केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहणेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई। [1267 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त नारक कितने काल तक पर्याप्त नारकपर्याय में रहता है ? [1267 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तमुहर्त कम दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त कम तेतीस सागरोपम तक (पर्याप्त नारकरूप में बना रहता है।) 1268. [1] तिरिक्खजोणियपज्जत्तए गं भंते ! तिरिक्खजोणियपज्जत्तए ति कालो केवचिरं होइ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिग्णि पलिग्रोवमाई अंतोमुहत्तणाई। [1268-1 प्र.] भगवन् ! पर्याप्त तिर्यञ्चयोनिक कितने काल तक पर्याप्त तिर्यञ्च रूप में रहता है ? [1268-1 उ.] गौतम! (वह) जघन्य अन्तर्मुहर्त तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम तक (पर्याप्त तिर्यञ्चरूप में रहता है / ) [2] एवं तिरिक्ख जोणिणिपज्जत्तिया वि। [1268-2] इसी प्रकार पर्याप्त तिर्यञ्चनी (तियंञ्च स्त्री) को कायस्थिति के विषय में भी (समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org