________________ 322] [ সরাধনাম্ব [1258-6 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला मनुष्य क्या कृष्णलेश्या वाली स्त्री से कृष्णलेश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है ? [1258-6 उ.] हाँ, गौतम ! वह उत्पन्न करता है / इस प्रकार (पूर्ववत्) ये भी छत्तीस आलापक हुए। [7] कम्मभूमयकण्हलेस्से णं भंते ! मणुस्से कण्हलेस्साए इथियाए कण्हलेस्सं गम्भं जणेज्जा? हंता गोयमा ! जणेज्जा एवं एते वि छत्तीसं पालावगा / [1258-7 प्र.] भगवन् ! कर्मभूमिक कृष्णलेश्या वाला मनुष्य कृष्णलश्या वाली स्त्री से कृष्णलश्या वाले गर्भ को उत्पन्न करता है ? [1258-7 उ.] हाँ, गौतम ! वह उत्पन्न करता है / इस प्रकार (पूर्वोक्तानुसार) ये भी छत्तीस आलापक हुए। [4] प्रकम्मभूमय कण्हलेसे णं भंते ! मणूसे अकम्मभूमयकण्हलेस्साए इस्थियाए प्रकम्ममूमयकण्हलेस्सं गब्भं जणेज्जा ? हंता गोयमा ! जणेज्जा, णवरं चउसु लेसासु सोलस पालावगा / एवं अंतरदीवगा वि / ॥छट्टो उद्देसप्रो समत्तो॥ / / पण्णवणाए भगवईए सत्तरसमं लेस्सापयं समत्तं / / [1258.8 प्र.] भगवन् ! अकर्म भूमिक कृष्ण लेश्या वाला मनुष्य अकर्मभूमिक कृष्णलेश्या वाली स्त्री से अकर्मभूमिक कृष्णलेश्या वाल गर्भ को उत्पन्न करता है ? [1258-8 उ.] हाँ, गौतम ! वह उत्पन्न करता है / विशेषता यह है कि (इनमें पाई जाने वाली) चार लश्याओं से (सम्बन्धित) कल 16 आलापक होते हैं। इसी प्रकार अन्तरद्वीपज (कृष्णलश्यादि वाले मनुप्य से) भी अन्तरद्वीपज कृष्णलेश्यादि वाली स्त्री से अन्तरद्वीपज कृष्णलेश्यादि वाले गर्भ की उत्पत्ति-सम्बन्धी सोलह आलापक होते हैं। विवेचन-लेश्या को लेकर गोत्पत्तिसम्बन्धी प्ररूपणा-प्रस्तुत सूत्र (1258.8 तक) में कृष्णादि छहों लेश्याओं वालों में से प्रत्येक लश्यावाले पुरुष से, प्रत्येक लेश्यावाली स्त्री से प्रत्येक लेश्यावाले गर्भ की उत्पत्ति का कथन किया गया है / अपने से भिन्न लेश्यावाले गर्भ को कैसे उत्पन्न करता है ?- अपने से भिन्न लश्यावाले गर्भ को उत्पन्न करने का कारण यह है कि उत्पन्न होने वाला जीव पूर्वजन्म में लेश्या को ग्रहण करके उत्पन्न होता है। वे लेश्याद्रव्य किसी जीव के कोई और किसी के कोई अन्य होते हैं। इस कारण जनक या जननी या दोनों भले ही कृष्णलेश्या में परिणत हों, जन्य जीव की लेश्या उससे भिन्न भी हो सकती है। इसी प्रकार अन्य लश्याओं के विषय में भी समझ लेना चाहिए।' 1. प्रज्ञापनामूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 376 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org