________________ सत्तरहवां लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक ] [313 तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य को अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य की अपेक्षा से जघन्य शुक्ललेश्यास्थानों से उत्कृष्ट कापोतलेश्यास्थान असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) नीललेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थान (उत्तरोत्तर) द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे कम कापोतलेश्या के जघन्य स्थान हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान, प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार जैसे द्रव्य की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का कथन किया गया है, वैसे ही प्रदेशों की अपेक्षा से भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विशेषता यह कि यहाँ 'प्रदेशों की अपेक्षा से ऐसा कथन करना चाहिए / द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से सबसे थोड़े कापोतलेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से हैं, (उनसे) नीललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य को अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या के जघन्य स्थान द्रव्य की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य की अपेक्षा से जघन्य शुक्ललेश्या स्थानों से उत्कृष्ट कापोतलेश्या स्थान असंख्यातगुणे हैं, (उनकी अपेक्षा) नीललेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या एवं शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थान द्रव्य की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। द्रव्य की अपेक्षा से उत्कृष्ट शुक्ललेश्यास्थानों से, जघन्य कापोतलेश्यास्थान प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणे हैं, (उनसे) जधन्य नीललेश्यास्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्यां एवं शुक्ललेश्या के जघन्यस्थान प्रदेशों की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। प्रदेश की अपेक्षा से जघन्य शुक्ललेश्यास्थानों से, उत्कृष्ट कापोतलेश्यास्थान प्रदेशों से असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) उत्कृष्ट नीललेश्यास्थान प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, इसी प्रकार कृष्णलेश्या, तेजोलेण्या, पद्मलेश्या एवं शुक्ललेश्या के उत्कृष्ट स्थान प्रदेशों की अपेक्षा से (उत्तरोत्तर) असंख्यातगुणे हैं। विवेचन---पन्द्रहवाँ अल्पबहुत्वाधिकार-प्रस्तुत तीन सूत्रों में छहों लेश्याओं के जघन्य और उत्कृष्ट स्थानों का द्रव्य का अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य-प्रदेशों को अपेक्षा से अल्पबहुत्व का प्रतिपादन किया गया है। निष्कर्ष-जघन्य और उत्कृष्ट स्थानों में द्रव्य को अपेक्षा से, प्रदेशों को अपेक्षा से तथा द्रव्य एवं प्रदेशों को अपेक्षा से सबसे कम कापोतलेश्या के स्थान हैं, उनसे नील, कृष्ण, तेजो, पद्म एव शुक्ललेश्या के स्थान उत्तरोत्तर प्रायः असंख्यातगुणे हैं, क्वचित् प्रदेशां को अओझा शुक्ललेश्यास्थानां से कापोतलेश्या स्थान अनन्तगुणे कहे गए हैं।' // सत्तरहवां लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक समाप्त // 1. प्रज्ञापनामूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 370 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org