________________ 302 [प्रज्ञापनासूत्र 1231. सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसया वण्णेणं पण्णता? गोयमा ! से जहाणामए अंके इ वा संखे इ वा चंदे इ वा कुदे इ वा दगे इ वा दगरए इ वा दही इ वा दहिघणे इ वा खोरे इ वा खोरपूरे इ वा सुक्कछिवाडिया इ वा पेहुणमिजिया इ वा धंतधोयरुप्पपट्टे इ वा सारइयबलाहए इ वा कुमुददले इ वा पोंडरियदले इ वा सालिपिठुरासो ति वा कुडगपुप्फरासी ति बा सिंदुवारवरमल्लदामे इ वा सेयासोए इ वा सेयकणवीरे इ वा सेयबंधुजीवए इ वा। भवेतारूया? गोयमा! णो इणठे समठे, सुक्कलेस्सा णं एत्तो इदुतरिया चेव कंतयरिया चेव पियतरिया चेव मणुण्णतरिया चेव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता / [1231 प्र.] भगवन् ! शुक्ललेश्या वर्ण से कैसी है ? [1231 उ.] गौतम ! जैसे कोई अंकरत्न हो, शंख हो, चन्द्रमा हो, कुन्द (पुष्प) हो, उदक (स्वच्छ जल) हो, जलकण हो, दही हो, जमा हुअा दही (दधिपिण्ड) हो, दूध हो, दूध का उफान हो, सूखी फली हो, मयूरपिच्छ की मिजी हो, तपा कर धोया हुआ चांदी का पट्ट हो, शरद् ऋतु का बादल हो, कुमुद का पत्र हो, पुण्डरीक कमल का पत्र हो, चावलों (शालिधान्य) के आटे का पिण्ड (राशि) हो, कुटज के पुष्पों की राशि हो, सिन्धुवार के श्रेष्ठ फूलों की माला हो, श्वेत अशोक हो, श्वेत कनेर हो, अथवा श्वेत बन्धुजीवक हो, (इनके समान शुक्ललेश्या श्वेतवर्ण की कही है।) [प्र.] भगवन् ! क्या शुक्ललेश्या ठीक ऐसे ही रूप वाली है ? / [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। शुक्ललेश्या इनसे भी वर्ण में इष्टतर यावत् अधिक मनाम होती है। 1232. एयानो णं भंते ! छल्लेस्साप्रो कतिसु वण्णेषु साहिज्जति ? गोयमा! पंचसु वष्णेसु साहिज्जंति / तं जहा---कण्हलेसा कालएणं वणेणं साहिज्जति, णीललेस्सा णोलएणं वणेणं साहिज्जति, काउलेस्सा काललोहिएणं बण्णेणं साहिज्जति, तेउलेस्सा लोहिएणं वणेणं साहिज्जइ. पम्हलेस्सा हालिद्दएणं वण्णणं साहिज्जइ, सुक्कलेस्सा सुक्किलएणं वपणेणं साहिज्जइ। [1232 प्र.] भगवन् ! ये छहों लेश्याएँ कितने वर्णों द्वारा-वर्णों वाली हैं ? [1232 उ.} गौतम ! (ये) पांच वर्षों वाली हैं। वे इस प्रकार हैं-कृष्णलेश्या काले वर्ण द्वारा कही जाती है, नीललेश्या नीले वर्ग द्वारा कही जाती है, कापोतलेश्या काले और लाल वर्ण द्वारा कही जाती है, तेजोलेश्या लाल वर्ण द्वारा कही जाती है, पद्मलेश्या पीले वर्ण द्वारा कही जाती है और शुक्ललेश्या श्वेत (शुक्ल) वर्ण द्वारा कही जाती है / विवेचन--द्वितीय : वर्णाधिकार-प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. 1226 से 1232 तक) में पृथक्पृथक छहों लेश्याओं के वर्गों की विभिन्न वर्ण वाली वस्तुओं से उपमा देकर प्ररूपणा की गई है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org