________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक द्वितीयवर्णाधिकार 1226. कण्हलेस्सा णं भंते ! वण्णेणं केरिसिया पण्णता? गोयमा ! से जहाणामए जीमूए इ वा अंजणे इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गबलवलए इ वा जंबूफलए इ वा अद्दारिटुए इ वा परपुढे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वा किण्हकेले इ वा पागासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा। भवेतारूवा? गोयमा ! णो इणठे समठे, किण्हलेस्सा णं एत्तो प्रणितरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव प्रमणुष्णतरिया चेव प्रमणामतरिया चेक वष्णेणं पण्णत्ता / [1226 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वर्ण से कैसी है ? [1226 उ.] गौतम ! जैसे कोई जीमूत (वर्षारम्भकालिक मेघ) हो, अथवा (आँखों में आंजने का सौवीरादि) अंजन (काला सुरमा अथवा अंजन नामक रत्न) हो, अथवा खंजन (गाड़ी की धुरी में लगा हुआ कीट-औंधन, अथवा दीवट के लगा मैल (कालमल) हो, कज्जल (काजल) हो, गवल (भैंस का सींग) हो, अथवा गवलवृन्द (भैस के सींगां का समूह) हो, अथवा जामुन का फल हो, या गीला अरीठा (या अरीठे का फूल) हो, या परपुष्ट (कोयल) हो, भ्रमर हो, या भ्रमरों की पंक्ति हो, अथवा हाथी का बच्चा हो, या काले केश हों, अथवा आकाशथिग्गल (शरदऋतु के मेघों के बीच का अाकाशखण्ड) हो, या काला अशोक हो, काला कनेर हो, अथवा काला बन्धुजीवक (विशिष्ट वृक्ष) हो, (इनके समान कृष्णलेश्या काले वर्ण की है।) [प्र.] (भगवन् ! ) क्या कृष्णलेश्या (वास्तव में) इसी रूप की होती है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। कृष्णलेश्या इससे भी अनिष्टतर है, अधिक अकान्त (असुन्दर), अधिक अप्रिय, अधिक अमनोज्ञ और अधिक अमनाम (अत्यधिक अवांछनीय) वर्ण वाली कही गई है। 1227. णोललेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पण्णता? गोयमा ! से जहाणामए भिगे इ वा भिगपत्ते इ वा चासे ति वा चासपिच्छे इ वा सुए इ वा सुयपिच्छे इ वा सामा इवा वणराई इवा उच्चंतए इ वा पारेवयगीवा इ वा मोरगीवा इ वा हलधरवसणे इ वा प्रयसिकुसुमए इ बा बाणकुसुभए इ वा अंजणकेसियाकुसुमए इ वा णोलुप्पले इ वा नीलासोए इ वा णोलकणवीरए इ वा णीलबंधुजीवए इ वा। भवेतारूवा? गोयमा ! जो इठे समठे, एतो जाव अमलामयरिया चेव वणेणं पण्णत्ता ? [1227 प्र.] भगवन् ! नोललेश्या वर्ण से कैसी है ? [1227 उ.] गौतम ! जैसे कोई भृग (पक्षी) हो, भृगपत्र हो, अथवा पपीहा (चास पक्षो) हो, या वासा को पांख हो, या शुरु (तोता) हो, तोते की पांख हो, श्यामा (प्रियंगुलता) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org