________________ सत्तरहयां लेश्यापद : चतुर्थ उद्देशक] [297 [उ.] गौतम ! जैसे कोई वड्र्यमणि काले सूत्र में या नीले सूत्र में, लाल सूत्र में या पीले सूत्र में अथवा श्वेत (शुक्ल) सूत्र में पिरोने पर वह उसी के रूप में यावत् (उसी के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में) पुनः पुनः परिणत हो जाती है, इसी प्रकार हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कृष्णलेश्या, नीललेश्या यावत शुक्ललेश्या को प्राप्त हो कर उन्हीं के रूप में यावत् उन्हीं के वर्णादिरूप में पुनः पुनः परिणत हो जाती है। 1223. से गूणं भंते ! णीललेस्सा किण्हस्लेसं जाव सुक्कलेस्सं पप्प तारूवत्ताए जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति ? ___ हंता गोयमा! एवं चेव / [1223 प्र.] भगवन् ! क्या नीललेश्या, कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या को पाकर उन्हीं के स्वरूप में यावत् (उन्हीं के वर्णादिरूप में) बार-बार परिणत होती है ? [1223 उ.] हाँ गौतम ! ऐसा ही है, (जैसा कि ऊपर कहा गया है / ) 1224. एवं काउलेस्सा कण्हलेस्सं णीललेस्सं तेउलेस्सं पम्हलेस्सं सुक्कलेस्सं, एवं तेउलेस्सा किण्हलेसं गोललेसं काउलेसं पम्हलेसं सुक्कलेसं, एवं पम्हलेस्सा कण्हलेसं णीललेसं काउलेसं तेउलेसं सुक्कलेस्स। [1224] इसी प्रकार कापोतलेश्या, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर, इसी प्रकार तेजोलेश्या, कृष्णलेश्या, कापोतलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या को प्राप्त होकर, इसी प्रकार पद्मलेश्या, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या को प्राप्त होकर (उनके स्वरूप में तथा उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में परिणत हो जाती है।) 1225. से गूणं भंते ! सुक्कलेस्सा किण्ह० णील० काउ० तेउ० पम्हलेस्सं पप्प जाव भुज्जो भुज्जो परिणमति ? हंता गोयमा! एवं चेव / [1225 प्र.] भगवन् ! क्या शुक्ललेश्या, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या और पद्मलेश्या को प्राप्त होकर यावत् (उन्हीं के स्वरूप में तथा उन्हीं के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श के रूप में) बार-बार परिणत होती है ? [1225 उ.] हाँ, गौतम ! ऐसा ही है, (जैसा कि ऊपर कहा गया है / ) विवेचन–प्रथम परिणामाधिकार--प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. 1220 से 1225) में कृष्णादि लेश्याओं की विभिन्न वर्णादिरूप में परिणत होने की प्ररूपणा की गई है। लेश्यानों के परिणाम की व्याख्या-परिणाम का अर्थ यहाँ परिवर्तन है / अर्थात्-एक लेश्या का दूसरी लेश्या के रूप में तथा उसी के वर्णादि के रूप में परिणत हो जाना लेश्यापरिणाम है। कृष्णलेश्या का नीललेश्या के रूप में परिणमन-प्रस्तुत में कृष्णलेश्या अर्थात्-कृष्णलेश्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org