________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक] [ 191 [1043-5 प्र.] भगवन् ! एक-एक मनुष्य की विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में कितनी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? [1043-5 उ.] गौतम! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं / [प्र] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं हैं / [प्र.] पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी आठ या सोलह होती हैं। [6] एगमेगस्स णं भंते ! मणूसस्स सम्वसिद्धगदेवत्ते केवतिया दग्विदिया अतीता? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ गस्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ / केवतिया बद्धलगा? गोयमा ! णत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि, जस्सऽस्थि अट्ट / [1043-6 प्र.] भगवन् ! एक-एक मनुष्य की सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1043-6 उ.] गौतम ! (वे) किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी पाठ होती हैं ? [प्र.] (उसकी) बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होती हैं ? [उ.] गौतम ! नहीं होती। [प्र.] (भगवन् ! उसकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी होती हैं ? उ ] गौतम! किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसकी होती हैं, उसकी आठ होती है। 1044. वाणमंतर-जोतिसिए जहा रइए (सु. 1041) / [1044] वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देव की तथारूप में अतीत, बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता (सू. 1041 में उल्लिखित) नैरयिक की वक्तव्यता के समान कहना चाहिए। 1045. [1] सोहम्मगदेवे वि जहा रइए (सु. 1041) / णवरं सोहम्मगदेवस्स विजय-बेजयंत-जयंत-अपराजियत्ते केवतिया दविदिया प्रतीता? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि, जस्सऽस्थि प्रष्ट / केवतिया बद्धलगा? गोयमा! णस्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ गस्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ वा सोलस वा। सव्वसिद्धगदेवत्ते जहा रइयस्स। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org