Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक / [ 193 [3] मणूसत्ते प्रतीया प्रणंता, बद्धल्लगा णस्थि, पुरेक्खडा अट्ठ वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जावा [1046-3] (इन्हीं की प्रत्येक की) मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह या चौवीस होती हैं, अथवा संख्यात होती हैं / [4] वाणमंतर-जोतिसियत्ते जहा परइयत्ते (सु. 1041) / [1046-4] (इन्हीं को प्रत्येक की) वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्क देवत्व के रूप में (अतीत, बद्ध, पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता सू. 1041 में उल्लिखित) नै रयिकत्वरूप की प्रतीतादि की वक्तव्यता के अनुसार (कहना चाहिए / ) [5] सोहम्मगदेवत्ते प्रतीया अणंता / बद्धलगा पत्थि / पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि, जस्सऽस्थि अट्ट वा सोलस वा चउवीसा वा संखेज्जा वा / [1046-5] (इन चारों की प्रत्येक को) सौधर्मदेवत्वरूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं, किसी की नहीं होती। जिसको होतो हैं, उसकी आठ, सोलह, चौवीस अथवा संख्यात होती हैं / [6] एवं जाव गेवेज्जगदेवत्ते / [1046-6] (इन्हीं चारों की प्रत्येक की) (ईशानदेवत्व से लेकर) यावत् अवेयकदेवत्व के रूप में (अतीतादि द्रव्येन्द्रियों को वक्तव्यता) इसी प्रकार (समझनी चाहिए / ) [7] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियत्ते प्रतीया कस्सइ प्रथि कस्सइ णस्थि, जस्सऽस्थि अट। केवतिया बद्धल्लगा? गोयमा! अट्ट। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ स्थि, जस्सऽस्थि अट्ठ।। [1046-7] (इन चारों की प्रत्येक की) विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ किसी की होती हैं और किसी को नहीं होती। जिसकी होती हैं उसको पाठ होती हैं। [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (वे) आठ हैं। प्रि.] कितनी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ हैं ? [उ.] गौतम ! किसी की होती हैं और किसी की नहीं होती, जिसकी होती हैं, उसके पाठ होती हैं। मेगस्स णं भंते! विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजियदेवस्स गदेवत्ते केवतिया ददिदिया प्रतीया ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org