Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ] [ 201 केवइया पुरेक्खडा? णस्थि / 11 दारं // [1055-5 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में प्रतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1055-5 उ.] गौतम ! (वे) नहीं हैं / [प्र.] बद्ध द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! वे) संख्यात हैं। [प्र] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां कितनी हैं ? [उ.) (मौतम ! वे) नहीं हैं। // 11 द्वार / / विवेचन-चौवीस दण्डकों की प्रतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों को प्ररूपणा--प्रस्तुत ग्यारहवें द्वार के अन्तर्गत नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक समस्त जीवों की अतीत बद्ध और पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की एकत्व, बहुत्व आदि विभिन्न पहलुओं से प्ररूपणा की गई है। प्रतीतादि का स्वरूप-अतीत का अर्थ है-भूतकालीन द्रव्येन्द्रियाँ, बद्ध का अर्थ है-वर्तमान में प्राप्त द्रव्येन्द्रियाँ एवं पुरस्कृत यानी आगार्मीकाल में प्राप्त होने वाली द्रव्येन्द्रियाँ / चार पहलुओं से प्रतीतादि द्रव्येन्द्रियों को प्ररूपणा-(१) एक-एक नैरयिक से लेकर एक-एक सर्वार्थसिद्धदेव तक की अतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों को प्ररूपणा, (2) बहुत-से नैरयिकों से लेकर बहत-से सर्वार्थसिद्ध देवों तक की अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा, (3) एक-एक नैरयिक से लेकर सर्वार्थसिद्ध देवों तक की नैरयिकत्व से लेकर सर्वार्थसिद्धत्व के रूप के अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा और (4) बहत-से नैरयिकों से सर्वार्थसिद्ध देवों तक की नैरयिकत्व से सर्वार्थसिद्धदेवत्व के रूप में अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की प्ररूपणा। एक नैरयिक को पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ-एक-एक जीवविषयक पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ आठ, सोलह. सबह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त बताई गई हैं, वे इस प्रकार से हैं-जो नारक अगले हो भव में मनुष्यपर्याय प्राप्त करके सिद्ध हो जाएगा, उसकी मनुष्यभवसम्बन्धी पाठ ही द्रव्येन्द्रियाँ होगीं / जो नारक नरक से निकल पंचेन्द्रियतिर्यचयोनि में उत्पन्न होगा और फिर मनुष्यगति प्राप्त करके सिद्धि प्राप्त करेगा, उसकी तिर्यंचभवसम्बन्धी पाठ और मनुष्यभवसम्बन्धी पाठ, य मिलकर सालह होगों। जो नारक नरक से निकलकर पंचेन्द्रियतिथंच होगा, तदनन्तर एकेन्द्रियकाय में उत्पन्न होगा और फिर मनुष्यभव पाकर सिद्ध हो जाएगा, उसकी पंचेन्द्रियतियं चभव की आठ, एकेन्द्रियभव को एक और मनुष्यभव की पाठ, यों सब मिलकर सत्तरह द्रव्येन्द्रियाँ होंगी। जो नारक संख्यातकाल तक संसार के परिभ्रमण करेगा, उसकी संख्यात, जो असंख्यात काल तक भवभ्रमण करेगा उसको असंख्यात और जो अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करेगा, उसकी अनन्त पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ होगी। ___मनुष्य को प्रागामो (पुरस्कृत) द्रव्येन्द्रियाँ-किसी मनुष्य की होती हैं और किसी को नहीं भी होती / जो मनुष्य उसी भव से सिद्ध हो जाते हैं, उनकी नहीं होती, शेष मनुष्य की होती हैं तो वे 8, 6, संख्यात असंख्यात अथवा अनन्त होती हैं। वह यदि अनन्तरभव में पुनः मनुष्य होकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org