Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : तृतीय उद्देशक ] [291 गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणति बहुतरागं खेत्तं पासति, दूरतरागं खेत्तं जाणइ दूरतरागं खेतं पासति, वितिमिरतरागं खेतं जाणइ वितिमिरतरागं खेतं पासइ, विसुद्धतरागं खेतं जाणति विसुद्धतरागं खेत्तं पासति / से केणठेणं भंते ! एवं उच्चति गोललेस्से णं णेरइए कण्हलेस्सं गेर इयं पणिहाय जाव विसुद्धतरागं खेतं पासइ ? गोयमा ! से जहाणामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जानो भूमिभागानो पव्वयं दुरूहति, दुरूहित्ता सम्वनो समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे धरणितलगयं पुरिसं पणिहाय सध्वयो समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे बहुतरागं खेतं जाणइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासति / ___ से एतेणठेणं गोयमा! एवं वुच्चति गोललेस्से रइए कण्हलेस्सं गेरइयं जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासति / [1215-2 प्र.] भगवन् ! नीललेश्या वाला नारक, कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा सभी दिशाओं और विदिशाओं में अवधि (ज्ञान) के द्वारा देखता हुआ कितने क्षेत्र को जानता है और कितने * क्षेत्र को (अवधिदर्शन से) देखता है ? [1215-2 उ.] गौतम ! (वह नीललेश्यी नारक कृष्णलेश्यी नारक की अपेक्षा) बहुतर क्षेत्र को जानता है और बहुतर क्षेत्र को देखता है, दूरतर क्षेत्र को जानता है और दूरतर क्षेत्र को देखता है, . (वह) क्षेत्र को वितिमिरतर (भ्रान्तिरहित रूप से) जानता है तथा क्षेत्र को वितिमिरतर देखता है, (वह) क्षेत्र को विशुद्धतर (अत्यन्त स्फुट रूप से) जानता है तथा क्षेत्र को विशुद्धतर (रूप से) देखता है। [प्र.] भगवन ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि नीललेश्या वाला नारक. कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर जानता है तथा क्षेत्र को विशुद्धतर देखता है ? [उ.] गौतम ! जैसे कोई पुरुष अतीव सम, रमणीय भूमिभाग से पर्वत पर चढ़ कर सभी दिशाओं-विदिशाओं में अवलोकन करे, तो वह पुरुष भूतल पर स्थित पुरुष को अपेक्षा, सब तरफ देखता-देखता हुआ बहुतर क्षेत्र को जानता-देखता है, यावत् क्षेत्र को विशुद्धतर जानता-देखता है। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि नीललेश्या वाला नारक, कृष्णलेश्या वाले नारक की अपेक्षा क्षेत्र को यावत् विशुद्धतर (रूप से) जानता-देखता है / [3] काउलेसे णं भंते ! गैरइए णीललेस्सं रइयं पणिहाय प्रोहिणा सम्वनो समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे केवतियं खेत्तं जाणइ ? केवतियं खेत्तं पासइ ? गोयमा ! बहुतरागं खेत्तं जाणइ बहुतरागं खेत्तं पासइ जाव विसुद्धतरागं खेत्तं पासइ ? से केण?णं भंते ! एवं बुच्चति काउलेसे णं णेरइए.जाव विसुद्धतराग खेत्तं पासति ? गोयमा ! से जहाणामए केइ पुरिसे बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाप्रो पव्वतं दुरूहति, दुरूहित्ता रुक्खं दुरूहति, दुरूहित्ता दो वि पादे उच्चाविय सव्वप्रो समंता समभिलोएज्जा, तए णं से पुरिसे पव्वतगयं धरणितलगयं च युरिसं पणिहाय सम्वनो समंता समभिलोएमाणे समभिलोएमाणे बहुतराग खेतं जाणति बहुतराग खेतं पासति जाव वितिमिरतरागं( विसुद्धतराग) खेत्तं पासइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org