________________ 264] [ प्रज्ञापनासूत्र 1166. [1] भषणवासीणं भंते ! देवाणं पुच्छा ? गोयमा! एवं चेव। [1166-1 प्र.] भगवन् ! भवनवासी देवों में कितनी लेश्याए कही गई हैं। [1166-1 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववत्) इनमें चार लेश्याएँ (होती हैं / ) [2] एवं भवणवासिणीण वि। {1166-2] इसी प्रकार भवनवासी देवियों में भी चार लेश्याएँ समझनी चाहिए। 1167. [1] वाणमंतरदेवाणं पुच्छा ? गोयमा ! एवं चेव। [1167-1 प्र.] भगवन् ! वाणव्यन्तर देवों में कितनी लेश्याएँ कही हैं ? [1167-2 उ.] गौतम ! इसी प्रकार चार लेश्याएँ (समझनी चाहिए।) [2] एवं बाणमंतरीण वि। [1167-2] वाणव्यन्तर देवियों में भी ये ही चार लेश्याएं समझनी चाहिए। 1168. [1] जोइसियाणं पुच्छा ? गोयमा ! एगा तेउलेस्सा। [1168-1 प्र.] ज्योतिष्क देवों के सम्बन्ध में प्रश्न ? [1168-1 उ.] गौतम ! इनमें एकमात्र तेजोलेश्या होती है। [2] एवं जोइसिणीण वि। / 1168-2] इसी प्रकार ज्योतिष्क देवियों के विषय में जानना चाहिए / ) 1166. [1] वेमाणियाणं पुच्छा ? गोयमा ! तिणि / तं जहा-तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा। [1169-1 प्र.] भगवन् ! वैमानिक देवों में कितनी लेश्याएँ हैं ? [1166-1 उ.] गौतम / (उनमें) तीन लेश्याएँ हैं-१. तेजोलेश्या, 2. पद्मलेश्या और 3. शुक्ललेश्या / [2] चेमाणिणीणं पुच्छा? गोयमा! एगा तेउलेसा। {1166-2 प्र.] वैमानिक देवियों को लेश्या सम्बन्धी पृच्छा ? [1166-2 उ.] गौतम ! उनमें एकमात्र तेजोलेश्या होती है / विवेचन-चौवीस दण्डकों में लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा--प्र त्रों में नारक से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org