Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक] [271 गोयमा ! सम्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया सुक्कलेसा, सुक्कलेस्साप्रो० संखेज्जगुणाम्रो, पम्हलेस्सा० सखेज्जगुणा, पम्हलेस्साप्रो० संखेज्जगुणाम्रो, तेउलेस्सा० संखेज्जगुणा, तेउलेस्सामो० संखेज्जगुणात्रो, काउलेस्साप्रो० संखेज्जगुणानो, गोललेस्साप्रो० विसेसाहियानो, कण्हलेस्सामो० विसेसाहियानो, काउलेस्सा० असंखेज्जगुणा, गोललेस्सा० विसेसाहिया, कण्हलेस्सा० विसेसा . . 1180-9 प्र. भगवन ! इन कृष्णलेश्या वाले से लेकर यावत् शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों और तिर्यञ्चस्त्रियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1180-9 उ.] गौतम ! सबसे कम शुक्ल लेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक हैं, (उनसे) शुक्ललेश्या वाली पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां संख्यातगुणी हैं, (उनसे) पद्मलेश्या वाले (पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च) संख्यातगुणे हैं, (उनसे) पद्मलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) संख्यातगुणी हैं, (उनकी अपेक्षा) तेजोलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) संख्यातगुण हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) संख्यातगुणी हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) संख्यातगणी हैं, (उनसे) नीललेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाली (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च स्त्रियां) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) असंख्यातगुणे हैं, (उनकी अपेक्षा) नीललेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) विशेषाधिक हैं। [10] एतेसि णं भंते ! तिरिक्स्य जोणियाणं तिरिक्खजोणिणीण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? __ गोयमा ! जहेव णवमं अप्पाबहुगं तहा इमं पि, नवरं काउलेस्सा तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा। एवं एते दस अप्पाबहुगा तिरिक्खजोणियाणं / 1180-10 प्र.] भगवन ! इन तियंञ्चयोनिकों और तिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों में से कृष्णलेश्या से लेकर यावत् शुक्ललेश्या की अपेक्षा से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [1180-10 उ. गौतम ! जैसे नौवा कृष्णादिलेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिकसम्बन्धी अल्पबहत्व कहा है, वैसे यह दसवाँ भी समझ लेना चाहिए / विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिक अनन्तगुणे होते हैं, (ऐसा कहना चाहिए।) इस प्रकार ये (पूर्वोक्त) दस अल्पबहुत्व तिर्यञ्चों के कहे गए हैं। 1181. एवं मणूसाणं पि अप्पाबहुगा प्राणियव्वा / णवरं पच्छिनगं प्रप्पाबहुगं गस्थि / [1181] इसी प्रकार (कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) मनुष्यों का भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए। परन्तु उनका अंतिम अल्पबहुत्व नहीं है। 1182. [1] एतेसि णं भंते ! देवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4? ____ गोयमा! सव्वत्थोवा देवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा असंखेज्जगुणा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org