________________ सत्तरसमं लेस्सापयं : तइओ उद्देसओ सत्तरहवाँ लेश्यापद : तृतीय उद्देशक चौवीसदण्डकवर्ती जीवों में उत्पाद-उद्वर्त्तन-प्ररूपणा 1166. [1] रइए णं भंते ! जेरइएसु उबवज्जति ? अणेरइए णेरइएसु उववज्जति ? गोयमा! जेरइए रइएसु उववज्जइ, गो अणेरइए जेरइएसु उववज्जति / [1199-1 प्र.] भगवन् ! नारक नारकों में उत्पन्न होता है, अथवा अनारक नारकों में उत्पन्न होता है ? [1199-1 उ.] गौतम! नारक नारकों में उत्पन्न होता है, अनारक नारकों में उत्पन्न नहीं होता। [2] एवं जाव वेमाणियाणं / [1199-2] इसी प्रकार (नारकों के समान ही असुरकुमार आदि भवनपतियों से लेकर) यावत् वैमानिकों की उत्पत्तिसम्बन्धी वक्तव्यता कहनी चाहिए। 1200. [1] णेरइए णं भंते ! णेरइएहितो उन्वट्टइ ? प्रणेरइए णेरइएहितो उव्वदृति ? गोयमा ! अणेरइए णेरइएहितो उन्वट्टति, णो रइए णेरइएहितो उध्वट्टति / [1200-1 प्र.] भगवन् ! नारक नारकों (नरकभव) से उद्वर्तन करता (निकलता) है. अथवा अनारक नारकों से उद्वर्तन करता है ? [1200-1 उ.] गौतम ! अनारक (नारक से भिन्न) नारकों (नारकभव) से उद्वर्तन करता (निकलता) है, (किन्तु) नारक नारकों से उवृत्त नहीं होता।। [2] एवं जाव वेमाणिए / णवरं जोतिसिय-वेमाणिएसु चयणं ति अभिलामो कायव्यो। [1200-2] इसी प्रकार (नारकों के समान ही) यावत् वैमानिकों तक उद्वर्तन-सम्बन्धी कथन करना चाहिए / विशेष यह है कि ज्योतिषकों और वैमानिकों के विषय में ('उद्वर्तन' के स्थान में) 'च्यवन' शब्द का प्रयोग (अभिलाप) करना चाहिए। विवेचन-चौबीसदण्डकवर्ती जीवों में उत्पाद-उद्वर्तन-प्ररूपणा-प्रस्तुत चार सूत्रों में नरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के उत्पाद एवं उद्वर्तन के सम्बन्ध में ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा से सैद्धान्तिक प्ररूपणा की गई है। प्रश्नोत्तर का प्राशय-प्रस्तुत दो सूत्रों में दो प्रश्न हैं-१. प्रथम प्रश्न उत्पत्तिविषयक है / नैरयिक नैरयिकों में उत्पन्न होता है, अनैरयिक नहीं। इसका अर्थ यह है कि नारक ही नरकभव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org