Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 288 ] [ प्रज्ञापनासूत्र जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या से युक्त होकर उद्वृत्त होता है ? इस प्रकार जैसी पृच्छा असुरकुमारों के विषय में की गई है, वैसी ही यहाँ भी समझ लेनी चाहिए / [1210-1 उ.] हाँ गौतम ! कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है, (किन्तु कृष्णलेश्या में उत्पन्न होने वाला वह पृथ्वीकायिक) कदाचित् कृष्णलेश्यायुक्त होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् नीललेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है तथा कदाचित् कापोतलेश्या से युक्त होकर उदवर्तन करता है, कदाचित् जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या बाला हो उदवर्तन करता है। (विशेष यह है कि वह) तेजोलेश्या से युक्त होकर उत्पन्न तो होता है, किन्तु तेजोलेश्या वाला होकर उद्वृत्त नहीं होता। [2] एवं प्राउक्काइय-वणप्फइकाइया वि भागियन्वा / (1210-2] अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों के (सामूहिक रूप से उत्पाद-उद्वर्तन के) विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए। [3] से णणं भंते ! कण्हले स्से गीलले स्से काउले स्से तेउक्काइए कण्हल सेसु गीलले सेसु काउलेसेसू तेउक्काइएसु उववज्जति ? कण्हलेसे गीलले से काउलेसे उन्धट्टति ? जल्लेसे उवचज्जति तल्ले से उन्बट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हले स्से गोलले स्से काउले स्से तेउक्काइए कण्हले सेसु णोलले सेसु काउल सेसु तेउक्काइएसु उववज्जति, सिय कण्हल से उव्वट्टति सिय णोलले से सिय काउले स्से उन्वट्टति, सिय जल्ल से उववज्जति तल्ले से उब्वति / [1210-3 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक, (क्रमशः) कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में ही उत्पन्न होता है ? तथा क्या वह (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाला, नीललेश्या वाला तथा कापोतलेश्या वाला होकर ही उद्वत्त होता है ? (अर्थात् वह) जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, क्या उसी लेश्या से युक्त होकर उद्वृत्त होता है ? [1210.3 उ.] हाँ, गौतम ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला तेजस्कायिक, (क्रमशः) कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में उत्पन्न होता है, किन्तु कदाचित् कृष्णलेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है, कदाचित् नीललेश्या से युक्त होकर, कदाचित् कापोत लेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है / (अर्थात्) कदाचित् जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, उसी लेश्या से युक्त होकर उद्वर्तन करता है, (कदाचित् अन्य लेश्या से युक्त होकर भी उद्वर्तन करता है।) [4] एवं वाउफ्काइया बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिया वि भाणियध्वा / [1210-4] इसी प्रकार वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के (उत्पादउद्वर्तन के) सम्बन्ध में कहना चाहिए। 1211. से गूणं भंते ! कण्हले से जाव सुक्कले से पंचेंदियतिरिक्खजोणिए कण्हले सेसु जाव सुक्कल सेसु पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जति ? पुच्छा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org