________________ सत्तरहवाँ लेश्यापद : तृतीय उद्देशक ] [ 287 तेजस्कायिकों, वायुकायिकों तथा विकलेन्द्रियों में तीन वक्तव्यताएं-तेजस्कायिकों, वायुकायिकों और विकलेन्द्रियों में तेजोलेश्या नहीं होती, क्योंकि उसका होना संभव नहीं है / ' / सामूहिक लेश्या की अपेक्षा से चौवीसदण्डकों में उत्पाद-उद्वर्तननिरूपण 1208. से पूणं भंते ! कण्हले स्से णीलले स्से काउल स्से णेरइए कण्हल स्सेसु णीले स्सेसु काउले स्सेसु र इएसु उववज्जति ? कण्हले स्से णोलले स्से काउले स्से उव्वट्टति जल्ले से उववज्जति तल्ले से उध्वट्टति ? हंता गोयमा ! कण्हल स्स-णीलले स्स-काउले स्सेसु उववज्जति, जल्ल से उववज्जति तस्ले से उब्वति / |1208 प्र. भगवन् ! कृष्णलेश्या, नीललेश्या और कापोतलेश्या वाला नैरयिक क्या क्रमश: कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या बाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? क्या वह (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाला, नीललेश्या वाला तथा कापोतलेश्या वाला होकर ही (वहाँ से) उद्वर्तन करता है ? (अर्थात्-) (जो नारको जिस लेश्या से युक्त होकर उत्पन्न होता है, क्या वह उसी लेश्या से युक्त होकर मरण करता है ? [1208 उ.] हाँ, गौतम ! (वह क्रमश:) कृष्णलेश्या, नीललश्या और कापोतलेश्या वाले न होता है और जो नारक जिस लेश्या वाला होकर उत्पन्न होता है, वह उसी लेश्या से युक्त होकर मरण करता है। 1206. से गूणं भंते ! कण्हल स्से जाव तेउले स्से असुरकुमारे कण्हल स्सेसु जाव तेउले स्सेसु असुरकुमारेसु उववज्जति ? एवं जहेव नेरइए (सु. 1208) तहा असुरकुमारे वि जाव थणियकुमारे वि / [1206 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्या वाला, यावत् तेजोलेश्या वाला असुरकुमार (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? (और क्या वह कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला होकर ही असुरकुमारों से उबृत्त होता है ?) [1206 उ.] हाँ, गौतम ! जैसे (स. 1208 में) नैरयिक के उत्पाद-उद्वर्त्तन के सम्बन्ध में कहा, वैसे ही असुरकुमार के विषय में भी, यावत् स्तनितकुमार के विषय में भी कहना चाहिए। 1210. [1] से गणं भंते ! कण्हले स्से जाव तेउल स्पे पुढविकाइए कण्हल स्सेसु जाव तेउले स्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति ? एवं पुच्छा जहा असुरकुमाराणं / ____ हंता गोयमा ! कण्हल स्से जाव ते उल्ले से पुढविक्काइए कण्हले स्सेसु जाव तेउल स्सेसु पुढविक्काइएसु उववज्जति, सिय कण्हले स्से उव्वट्टति सिय णीलले से सिय काउल स्से उध्वदृति, सिय जल्ले स्से उववज्जइ तल्ले से उबट्टइ, तेउल स्से उववज्जइ, जो चेव णं तेउले स्से उव्वदृति / _ [1210-1 प्र. भगवन् ! कृष्णलेश्या वाला यावत् तेजोलेश्या वाला पृथ्वीकायिक, क्या (क्रमश:) कृष्णलेश्या वाले यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? (और क्या वह 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 354 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org