________________ 250 ] [ प्रज्ञापनासूत्र [1192 उ.] गौतम ! कृष्णलेश्यी नारकों से नीललेश्यी नारक महद्धिक है, नीललेश्यी नारकों से कापोतलेश्यी नारक महद्धिक हैं। कृष्णलेश्या वाले नारक सबसे अल्प ऋद्धि वाले हैं और कापोतलेश्या वाले नारक सबसे महती ऋद्धि वाले हैं। 1163. एतेसि णं भंते ! तिरिक्खजोणियाणं काहलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अपिडिया वा महिड्डिया का? गोयमा ! जहा जोवा। [1193 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले यावत् शुक्ललेश्या वाले तिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किनसे अल्पद्धिक अथवा महद्धिक हैं ? [1163 उ. गौतम ! जैसे समुच्चय जीवों को (कृष्णादि लेश्याओं की अपेक्षा से) अल्पद्धिकता-महद्धिकता कही है, उसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिकों की (कृष्णादि लेश्याओं की अपेक्षा से अल्पद्धिकता और महद्धिकता) कहनी चाहिए। 1164. एतेसि गं भंते ! एगिदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पिड्ढिया वा महिढिया वा ? गोयमा ! कण्हलेसेहितो, एगिदियतिरिक्खजोणिएहितो णीललेस्सा महिड्ढया, णीललेस्सेहितो काउलेस्सा महिड्डिया, काउलेस्से हितो तेउलेस्सा महिड्ढिया, सवपिढिया एगिदियतिरिक्खजोणिया कण्हलेस्सा, सन्धमाहिड्ढिया तेउलेस्सा। [1164 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले, यावत् तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किससे अल्पद्धिक हैं अथवा महद्धिक हैं ? (1194 उ.] गोतम ! कृष्णलेश्या वाले एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों की अपेक्षा नीललेश्या वाले एकेन्द्रिय महद्धिक हैं, नीललेश्या वाले (एकेन्द्रियों) से कापोतलेश्या वाले (एकेन्द्रिय) महद्धिक हैं, कापोतलेश्या वालों से तेजोलेश्या वाले (एकेन्द्रिय) महद्धिक हैं। सबसे अल्पऋद्धि वाले कृष्णलेश्याविशिष्ट एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक हैं और सबसे महाऋद्धि वाले तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं। 1165. एवं पुढविक्काइयाण वि / [1195] इसी प्रकार (सामान्य एकेन्द्रिय तिर्यञ्चों की अल्पद्धिकता और महद्धिकता की तरह कृष्णादिचतुलेश्याविशिष्ट) पृथ्वीकायिकों की (अल्पद्धिकता-महद्धिकता के विषय में समझ लेना चाहिए।) 1166. एवं एतेणं अभिलावेणं जहेव लेस्साप्रो भावियाओ तहेव णेयव्वं जाव चरिदिया / [1196] इस प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जिनमें जितनी लेश्याएँ जिस क्रम से विचारीकही गई हैं, उसी क्रम से इस (पूर्वोक्त) पालापक के अनुसार उनकी अल्पद्धिकता-महद्धिकता समझ लेनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org