________________ 276 ] [ प्रज्ञापनासूत्र असंखेज्जगुणा, तेउलेस्साम्रो भवणवासिणीनो देवीलो संखेज्जगुणाप्रो, काउलेस्सा भवणवासी प्रसंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्सानो भवणवासिणोमो संखेज्ज. गुणाओ, णोललेसानो विसेसाहियात्रो, कण्हलेसाम्रो विसेसाहियानो; तेउलेस्सा वाणमंतरा असंखेज्जगुणा, तेउलेस्साम्रो वाणमंतरीप्रो संखेज्जगुणामो, काउलेस्सा वाणमंतरा असंखेज्जगुणा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साप्रो वाणमंतरीओ संखेज्जगुणाओ, णोललेस्सानो विसे साहियानो, कण्हलेस्साप्रो विसेसाहियानो; तेउलेस्सा जोइसिया संखेज्जगुणा, तेउलेस्सायो जोइसिणीयो संखेज्जगुणाप्रो। [1190 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले से लेकर शुक्ललेश्या वाले तक के भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों और देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1190 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े शुक्ललेश्या वाले वैमानिक देव हैं, (उनको अपेक्षा) पद्मलेश्या वाले (वैमानिक देव) असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाले (वैमानिक देव) असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या बाली वैमानिक देवियाँ संख्यातगुणी हैं, (उनकी अपेक्षा) तेजोलेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यातगुणी हैं, उनसे कापोतलेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यातगुण हैं, (उनकी अपेक्षा) नीललेश्या वाले (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाले (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाली भवनवासी देवियाँ संख्यातगुणी हैं, (उनसे) नीललेश्या वाली (भवनवासी देवियाँ) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाली (भवनवासी देवियाँ) विशेषाधिक हैं, (उनकी अपेक्षा) तेजोलेश्या वाले वाणव्यन्तर देव असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाले वाणव्यन्तर देव असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) नीललेश्या वाले (वाणव्यन्तर देव) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाले (वाणव्यन्तर देव) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाली वाणव्यन्तर देवियाँ संख्यातगुणी हैं, (उनसे) नीललेश्या वाली (वाणव्यन्तर देवियाँ) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाली (वाणव्यन्तर देवियाँ) विशेषाधिक हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाले ज्योतिष्क देव संख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाली ज्योतिष्क देवियाँ संख्यातगुणी हैं / विवेचन--विविध लेश्याविशिष्ट चौबीसदण्डकवर्ती जीवों का अल्पबहुत्व---प्रस्तुत बीस सूत्रों (सू. 1171 से 1160 तक) में कृष्णादिलेश्याविशिष्ट चौवीस दण्डकों के विभिन्न लिगादियुक्त जीवों के विविध अपेक्षाओं से अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है / कृष्ण-नील-कापोतलेश्यायुक्त नारकों का अल्पबहुत्व-नारकों में केवल तीन ही लेश्याएँ पाई जाती हैं-कृष्ण, नील और कापोत / जैसा कि कहा है-प्रारम्भ की दो नरकपृथ्वियों में कापोत, तीसरी नरकपृथ्वी में मिश्र (कापोत और नील), चौथी में नील, पांचवीं में मिश्र (नील और कृष्ण), छठी में कृष्ण और सातवीं पृथ्वी में महाकृष्ण लेश्या होती है। यही कारण है कि नारकों में कृष्ण, नील और कापोत, इन तीन लेश्या वालों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है / __ सबसे कम कृष्णलेश्या वाले नारक इस कारण बताए गए हैं कि कृष्णलेश्या पांचवों पृथ्वी के कतिपय नारकों तथा छठी और सातवीं पृथ्वी के नारकों में ही पाई जाती है। कृष्णलेश्या वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org