Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ सत्तरहवां लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक) [273 गोयमा ! सव्वत्योवा भवणवासी देवा तेउलेस्सा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, णोललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया / [1183-1 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले, यावत् तेजोलेश्या वाले भवनवासी देवों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1183-1 उ.] गौतम ! सबसे कम तेजोलेश्या वाले भवनवासी देव हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाले (भवनवासी देव) असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्णलेश्या वाले (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं / [2] एतेसि णं भंते ! भवणवासिणीणं वेवीणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा ! एवं चेव / [1183-2 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाली यावत् तेजोलेश्या वाली भवनवासी देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1183-2 उ.] गौतम ! (जैसे कृष्णलेश्या वाले से लेकर यावत् तेजोलेश्या पर्यन्त भवनवासी देवों का अल्पबहुत्व कहा है) इसी प्रकार उनकी देवियों का भी अल्पबहुत्व कहना चाहिए / [3] एतेसि णं भंते ! भवणवासोणं देवाणं देवीण य कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा बा 4 ? गोयमा ! सम्बत्थोवा भवणवासी देवा तेउलेस्सा, भवणवासिणीयो तेउलेस्सायो संखेज्जगुणात्रो, काउलेस्सा भवणवासी असंखेज्जगुणा, णोललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, काउलेस्साओ भवणवासिणीप्रो संखेज्जगुणाप्रो, णोललेस्साम्रो विसेसाहियाप्रो, कण्हलेस्साप्रो विसेसाहियानो। [1183-3 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले, यावत् तेजोलेश्या वाले भवनवासी देवों और देवियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं। [1183-3 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े तेजोलेश्या वाले भवनवासी देव हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाली भवनवासी देवियां संख्यातगुणी हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाले भवनवासी देव असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) नीललेश्या वाले (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्यी (भवनवासी देव) विशेषाधिक हैं, (उनसे) कापोतलेश्या वाली भवनवासी देवियां संख्यातगुणी हैं, (उनसे) नीललेश्या वाली (भवनवासी देवियां) विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्णलेश्या वाली भवनवासी देवियां विशेषाधिक हैं। 1184. एवं वाणमंतराण धि तिण्णेव अप्पाबहुया जहेव भवणवासीणं तहेव भाणियव्वा (1183 [1-3]) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org