________________ सत्तरहवां लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक ! [267 गोयमा ! सम्वत्थोवा एगिदिया तेउलेस्ता, काउलेस्सा अणंतगुणा, णोललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया। {1173 प्र. भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या तक से युक्त एकेन्द्रियों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत. तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [1173 उ.] गौतम ! सबसे कम तेजोलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, (उनसे) अनन्तगुणे अधिक कापोतलेश्या वाले एकेन्द्रिय हैं, (उनसे) नोललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे भी कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं। 1174. एतेसि णं भंते ! पुढविक्काइयाणं कण्हलेस्साणं जाव ते उलेस्साण य कतरे कतरेहितो अध्पा वा 4? गोयमा ! जहा प्रोहिया एंगिदिया (सु. 1173) / णवरं काउलेस्सा असंखेज्जगुणा / [1174 प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले पृथ्वीकायिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1174 उ.] गौतम ! जिस प्रकार समुच्चय एकेन्द्रियों का (सू. 1173 में) कथन किया है, उसी प्रकार पृथ्वीकायिकों (के अल्पबहुत्व) का कथन करना चाहिए। विशेषता (उनसे) इतनी है कि कापोतलेश्या वाले पृथ्वीकायिक असंख्यातगुणे हैं / 1175. एवं प्राउक्काइयाण वि। [1175] इसी प्रकार कृष्णादिलेश्या वाले अप्कायिकों में अल्पबहुत्व का निरूपण भी समझ लेना चाहिए। 1176. एतेसि णं भंते ! तेउक्काइयाणं कण्हलेस्साणं णीललेस्साणं काउलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा! सव्यथोवा तेउक्काइया काउलेस्सा, णीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया। [1176 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले, नीललेश्या वाले और कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1176 उ.] गौतम ! सबसे कम कापोतलेश्या वाले तेजस्कायिक हैं, (उनको अपेक्षा) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं, (उनसे) कृष्णलेश्या वाले (तेजस्कायिक) विशेषाधिक हैं। 1177. एवं वाउक्काइयाण वि / [1177) इसी प्रकार (कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) वायुकायिकों का भी प्रल्पत्र हुत्व (समझ लेना चाहिए। 1178. एतेसि गं भंते ! वणप्फइकाइयाणं कण्हलेस्साणं जाव ते उलेस्साण य? जहा एगिदियानोहियाणं (सु. 1173) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org