________________ 268] [ प्रज्ञापनासूत्र [1178 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वाले से लेकर यावत् (और) तेजोलेश्या वाले वनस्पतिकायिकों में से (कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं) ? [1178 उ.] गौतम ! जैसे (सू. 1173 में) समुच्चय (ोधिक) एकेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार वनस्पतिकायिकों का अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए / 1176. बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं जहा तेउक्काइयाणं (सु. 1176) / [1179] द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व (सू. 1176 में उक्त) तेजस्कायिकों के समान है। 1180. [1] एतेसि गं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा! जहा प्रोहियाणं तिरिक्खजोणियाणं (सु. 1172) / गवरं काउलेस्सा प्रसंखेज्जगुणा। [1180-1 प्र.] भगवन् ! इन कृष्णलेश्या वालों से लेकर यावत् शुक्ललेश्या वाले पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? [1180-1 उ.] गोतम ! जैसे (सू. 1172 में कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) औधिक (समुच्चय) तिर्यञ्चों का अल्पबहुत्व कहा है, उसी प्रकार पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अल्पबहुत्व कहना चाहिए। विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च असंख्यातगुणे हैं। [2] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं जहा ते उक्काइयाणं / (सु. 1176) / [1180-2] (कृष्णादिलेश्यायुक्त) सम्मूच्छिम पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का अल्पबहुत्व (सू. 1176 में उक्त) तेजस्कायिकों के (अल्पबहुत्व के) समान (समझना चाहिए)। [3] गमवक्कतियपदियतिरिक्खजोणियाणं जहा प्रोहियाणं तिरिक्खजोणियाणं (सु. 1172) / णवरं काउलेस्सा संखेज्जगुणा / [1180-3] (कृष्णादिलेश्याविशिष्ट) गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अल्पबहुत्व समुच्चय पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के (सू. 1172 में उक्त) अल्पबहुत्व के समान जान लेना चाहिए / विशेषता यह है कि कापोतलेश्या वाले (गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यञ्च) संख्यात गुणे (कहने चाहिए)। [4] एवं तिरिक्खजोणिणीण वि / [1180-4] (जैसे गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों का अल्पबहुत्व कहा है,) इसी प्रकार गर्भज पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक स्त्रियों का भी (अल्पबहुत्व कहना चाहिए)। [5] एतेसि णं भंते ! सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं गम्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाण य कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साण य कतरे कतरहितो अप्पा वा 4 ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org