Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सत्तरहवां लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक ] [ 265 वैमानिक देवियों पर्यन्त समस्त संसारी जीवों में से किसमें कितनी लेश्याएँ पाई जाती हैं ?, यह प्रतिपादन किया है। सम्बन्धित संग्रहणी गाथायें इस प्रकार हैं किण्हानीला काऊ तेऊलेसा य भवणवंतरिया। जोइस-सोहम्मोसाण तेऊलेसा मुणेयव्वा // 1 // कप्पे सणंकुमारे माहिदे चेव बंभलोए य। एएस पम्हलेसा, तेण परं सुक्कलेसा उ // 2 // पुढवी-पाऊ-वणस्सइ-बायर-पत्तेय लेस चत्तारि। गम्भय-तिरिय-नरेस छल्लेसा, तिन्नि सेसाणं / / 3 / / संग्रहणीगाथार्थ-भवनवासियों और व्यन्तर देवों में कृष्ण, नील, कापोत और तेजोलेश्या होती हैं / ज्योतिष्कों तथा सौधर्म और ईशान देवों में केवल तेजोलेश्या होती है / सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या और उनसे आगे के कल्पों में शुक्ललेश्या होती है / बादर पृथ्वीकाय, अप्काय और प्रत्येक वनस्पतिकाय में प्रारम्भ की चार लेश्याएँ, गर्भज तिर्यञ्चों और मनुष्यों में छह लेश्याएँ और शेष जीवों में प्रथम की तीन लेश्याएँ होती हैं / ' सलेश्य अलेश्य जीवों का अल्पबहुत्व 1170. एतेसि णं भंते ! सलेस्साणं जीवाणं कण्हलेस्साणं जाव सुक्कलेस्साणं प्रलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 42 ? गोयमा ! सम्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा, प्रलेस्सा अणंतगुणा, काउलेस्सा अणंतगुणा, णोललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया, सलेस्सा विसेसाहिया। [1170 प्र.] भगवन् ! इन सलेश्य, कृष्णलेश्या से लेकर यावत् शुक्ललेश्या वाले और अलेश्य जीवों में कोन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [1170 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े जीव शुक्ललेश्या वाले हैं, (उनकी अपेक्षा) पद्मलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, (उनसे) तेजोलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, (उनसे) अलेश्य अनन्तगुणे हैं, कापोतलेश्या वाले (उनसे) अनन्तगुणे हैं, नीललेश्या वाले (उनसे) विशेषाधिक हैं, कृष्णलेश्या वाले उनसे विशेषाधिक हैं और सलेश्य (इनसे भी) विशेषाधिक हैं। विवेचन--सलेश्य-अलेश्य प्रादि जीवों का अल्पबहुत्व-प्रस्तुत सूत्र में सलेश्य, कृष्णलेश्या से लेकर शुक्ललेश्या वाले जीवों और अलेश्य जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है / अल्पबहुत्व की समीक्षा-शुक्ललेश्या वाले सबसे कम इसलिए कहे गए हैं कि शुक्ललेश्या - .. .1. प्रज्ञापनासूत्र, मलय. वत्ति, पत्रांक 344 2. जहाँ भी 'अप्पा वा के प्रागे '4' का अंक है, वहाँ वह 'बहया वा तल्ला वा विसेसाहिया वा' इन शेष तीनों. पदों सहित चार पदों का सूचक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org