________________ 262 ] [प्रज्ञापनासूत्र [1159 प्र. भगवन् ! एकेन्द्रिय जीवों में कितनी लेश्याएँ कही हैं ? [1156 उ.] गौतम ! (उनमें) चार लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार--कृष्णलेश्या से तेजोलेश्या तक। 1160. पुढविक्काइयाणं भंते ! कति लेस्साप्रो ? गोयमा! एवं चेव। [1160 प्र. भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [1160 उ.] गौतम ! इनमें भी इसी प्रकार (चार लेश्याएं समझनी चाहिए।) 1161. प्राउ-घणप्फतिकाइयाण वि एवं चेव / [1161] इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों में भी चार लेश्याएँ (जाननी चाहिए।) 1162. तेउ-बाउ-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदियाणं जहा परइयाणं (सु. 1157) / [1162] तेजस्कायिक, वायुकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में (सू. 1157 में उक्त) नैरयिकों की तरह (तीन लेश्याएँ होती हैं।) 1163. [1] पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा ! छल्लेस्साम्रो, कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा / [1163-1 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएं होती हैं ? [1163-1 उ.] गौतम ! (उनमें) छह लेश्याएं होती हैं। यथा-कृष्णलेश्या से शुक्ललेश्या तक। [2] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ? गोयमा ! जहा मेरइयाणं (सु. 1157) / [1163-2 प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [1163-2 उ.} गौतम ! नारकों के समान (प्रारम्भ की तीन लेश्याएँ) समझनी चाहिए / [3] गम्भवक्कतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं युच्छा ? गोयमा ! छल्लेसामो, तं जहा-कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। [1163-3 प्र.] भगवन् ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों में कितनी लेश्याएं होती हैं ? [1163-3 उ.] गौतम ! (उनमें) छह लेश्याएँ होती हैं-कृष्णलेश्या से शुक्ललेश्या (तक)। [4] तिरिक्खजोणिणोणं पुच्छा ? गोयमा ! छल्लेसानो एताप्रो चेव / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org