________________ सत्तरसम लेस्सापयं : बीओ उद्देसओ सत्तरहवाँ लेश्यापद : द्वितीय उद्देशक लेश्या के भेदों का निरूपण-- 1156. कति णं भंते ! लेस्साप्रो पण्णत्तानो ? गोयमा! छल्लेस्साओ पण्णत्ताओ। तं जहा-कण्हलेस्सा 1 गोललेस्सा 2 काउलेस्सा 3 तेउलेस्सा 4 पम्हलेस्सा 5 सुक्कलेस्सा 6 / [1156 प्र.] भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ? [1156 उ.] गौतम ! लेश्याएँ छह कही गई हैं / वे इस प्रकार-(१) कृष्णलेश्या, (2) नीललेश्या, (3) कापोतलेश्या, (4) तेजोलेश्या, (5) पद्मलेश्या और (6) शुक्ललेश्या / विवेचन-- लेश्या के भेदों का निरूपण-प्रस्तुत सूत्रों में लेश्या के कृष्ण आदि छह भेदों का निरूपण किया गया है। ___ कृष्णलेश्या प्रादि के शब्दार्थ-कृष्ण द्रव्यरूप अथवा कृष्णद्रव्य-जनित लेश्या कृष्णलेश्या कहलाती है। इसी प्रकार नीललेश्या आदि का शब्दार्थ भी समझ लेना चाहिए।' चौवीस दण्डकों में लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा--- 1157. जेरइयाणं भंते ! कति लेस्साम्रो पण्णत्तायो ? गोयमा! तिष्णि / तं जहा--किण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्ला / [1157 प्र. नैरयिकों में कितनी लेश्याएँ होती हैं ? [1157 उ.] गौतम ! (उनमें) तीन लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार (1) कृष्णलेश्या, (2) नीललेश्या और (3) कापोतलेश्या / 1158. तिरिक्खजोणियाणं भंते ! कति लेस्साश्रो पण्णत्ताओ? गोयमा ! छल्लेस्साओ / तं जहा- कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा। [1158 प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक जीवों में कितनो लेश्याएँ कही गई हैं ? [1158 उ.] गौतम ! (उनमें) छह लेश्याएँ होती हैं। वे इस प्रकार कृष्णलेश्या से लेकर (यावत्) शुक्ललेश्या तक। 1159. एगिदियाणं भंते ! कति लेस्साम्रो पण्णत्तानो ? गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ / तं जहा-कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा / 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 344 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org