Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पन्द्रहवां इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक ] [207 नहीं। जो नारक नरक से निकलकर अन्य गति में उत्पन्न होकर पुन: नरक में उत्पन्न होने वाला है, उसकी नरकपन में भावी भावेन्द्रियाँ होती हैं, किन्तु जिस जीव का वर्तमान नारकभव अन्तिम है अर्थात्-जो नरक से निकल कर फिर कभी नरक में उत्पन्न नहीं होगा, उसको नारकत्वरूप में भावी भावेन्द्रियाँ नहीं होती। जिसकी नारकरूप में भावी भावेन्द्रियाँ होती हैं, उसकी पांच, दस, पन्द्रह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त भी होती हैं / जो भविष्य में एक बार फिर नरक में उत्पन्न होगा, उसकी पांच; जो दो वार उत्पन्न होगा, उसकी दस; तीन बार उत्पन्न होगा उसकी पन्द्रह; संख्यात, असंख्यात या अनन्त वार उत्पन्न होने वाले को संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी (पुरस्कृत) भावेन्द्रियाँ होती हैं। इसी प्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिए। भावेन्द्रिय विषयक चार गम-जिस प्रकार द्रव्येन्द्रियों के विषय में नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्य और देव सम्बन्धी ये चार गम कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी चार गम समझ लेने चाहिए।' // पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : द्वितीय उद्देशक समाप्त / / 11 पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद समाप्त / / 1. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक 317 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org