Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 214] [प्रज्ञापनासूत्र 1075. मणूसाणं पुच्छा। गोयमा ! पण्णरसविहे पयोगे पण्णत्ते / तं जहा-सच्चमणप्पप्रोगे 1 जाव कम्मासरीरकायप्पनोगे 15 / [1075 प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं ? [1075 उ.] गौतम ! उनके पन्द्रह प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं---सत्यमनःप्रयोग से लेकर कार्मणशरीरकायप्रयोग तक। 1076. वाणमंतर जोतिसिय-वेमाणियाणं जहा णेरइयाणं (सु. 1070) / [1076] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के प्रयोग के विषय में नैरयिकों (की सू. 1070 में अंकित वक्तव्यता) के समान (समझना चाहिए / ) विवेचन–समुच्चय जीवों और चौवीस दण्डकों में प्रयोगों को प्ररूपणा–प्रस्तुत 8 सूत्रों (सू. 1069 से 1076 तक) में समुच्चय जीवों में कितने प्रयोग होते हैं ? यह प्ररूपणा की गई है / निष्कर्ष-समुच्चय जीवों में 15 प्रयोग होते हैं, क्योंकि नाना जीवों की अपेक्षा से सदैव पन्द्रह प्रयोग पाए जाते हैं / नैरयिकों तथा व्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिकों में ग्यारह प्रयोग पाए जाते हैं, क्योंकि इनमें औदारिक, प्रौदारिकमिश्र, आहारक और आहारकमिश्र प्रयोग नहीं होते। वायुकायिकों को छोड़कर शेष चार पृथ्वीकायादि स्थावरों में तीन प्रयोग पाये जाते हैं - औदारिक, औदारिकमिश्र और कार्मणशरीरकाय प्रयोग / वायुकायिकों में इन तीनों के उपरांत वैक्रिय और वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग भी पाए जाते हैं / द्वि-त्रि-चतुरिन्द्रिय जीवों में प्रत्येक के 4-4 प्रयोग पाए जाते हैं-असत्यामृषाभाषाप्रयोग, औदारिक, औदारिकमिश्र, कार्मणशरीरकाय प्रयोग। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में प्राहारक और आहारकमिश्र को छोड़कर शेष 13 प्रयोग पाए जाते हैं, जबकि मनुष्यों में 15 ही प्रयोग पाए जाते हैं। समुच्चय जीवों में विभाग से प्रयोगप्ररूपणा--- 1077. जीवा णं भंते ! कि सच्चमणप्पयोगी जाव कि कम्मासरीरकायप्पयोगी ? गोयमा! जीवा सव्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पयोगी वि जाव वेब्वियमीससरीरकायप्पयोगी वि कम्मासरीरकायापयोगी वि, अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पयोगी य 1 अहवेगे य पाहारगसरीरकायप्पओगिणो य 2 अहवेगे य आहारगमोससरीरकायप्पनोगो य 3 अहवेगे य पाहारगमोससरीरकायप्पप्रोगिणो य 4 चउभंगो, अहवेगे य पाहारगसरीरकायप्पयोगी य पाहारगमीसासरीरकायप्पयोगी य 1 अहवेगे य प्राहारगसरीरकायप्पनोगी य पाहारगमीससरोरकायप्पश्रोगिणो य 2 प्रहवेगे य पाहारगसरोरकायप्पयोगिणो य आहारगमोसासरीरकायप्पलोगो य 3 अहवेगे य आहारगसरीरकायप्पयोगिणो य पाहारगमीसासरीरकायप्पयोगिणो य 4, एए जीवाणं अट्ट भंगा। 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 320 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org