________________ 236] [ प्रज्ञापनासूत्र 1118. से कि त उहिस्सपविभत्तगती ? उहिस्सपविभत्तगती जेणं पायरियं वा उवज्झायं वा थेरं वा पत्ति वा गणि वा गणहरं वा गणावच्छेइयं वा उद्दिसिय 2 गच्छति / से तं उद्दिस्सपविभत्तगती 13 / / [1118 प्र.] उद्दिश्यप्रविभक्तगति का क्या स्वरूप है ? / [1118 उ.] प्राचार्य, उपाध्याय, स्थविर, प्रवर्तक, गणि, गणधर अथवा गणावच्छेदक को लक्ष्य (उद्देश्य) करके जो गमन किया जाता है. वह उद्दिश्यप्रविभक्तगति है / यह हुआ उद्दिश्यप्रविभक्तगति का स्वरूप / / 13 / / 1116. से कि तं चउपुरिसपविभत्तगती ? चउपुरिसपविभत्तगती से जहाणामए चत्तारि पुरिसा समगं पट्टिता समगं पज्जवट्ठिया 1 समगं पट्टिया विसमं पज्जवटिया 2 विसमं पट्ठिया समगं पज्जवटिया 3 विसमं पट्टिया विसमं पज्जवडिया 4 / से तं चउपुरिसपविभत्तगती 14 / [1119 प्र.] चतुःपुरुषप्रविभक्तगति किसे कहते हैं ? [1116 उ.] जैसे-१. किन्हीं चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ और एक ही साथ पहुँचे, 2. (दूसरे) चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान हुआ, किन्तु वे एक साथ नहीं (आगे-पीछे) पहुँचे, 3. (तीसरे) चार पुरुषों का एक साथ प्रस्थान नहीं (आगे-पीछे) हुआ, किन्तु पहुँचे चारों एक साथ, तथा 4. (चौथे) चार पुरुषों का प्रस्थान एक साथ नहीं (आगे-पीछे) हुआ और एक साथ भी नहीं (आगे-पीछे) पहुँचे; इन चारों पुरुषों की चतुर्विकल्पात्मकगति चतुःपुरुषप्रविभक्तगति है। यह हुआ चतुःपुरुषप्रविभक्तगति का स्वरूप / / 14 / / 1120. से कि तं वंकगती ? वंकगतीचउम्विहा पण्णता। तं जहा-घणया 1 थंभणया२लेसणया ३५वडणया४ / से तं वंकगती 15 // [1120 प्र.] वक्रगति किस प्रकार की है ? [1120 उ.] वक्रगति चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार--(१) घट्टन से, (2) स्तम्भन से, (3) श्लेषण से और (4) प्रपतन से / यह है वक्रगति का निरूपण / / 15 / / 1121. से कि तं पंकगती ? पंकगती से जहाणामए केइ पुरिसे सेयंसि वा पंकसि वा उदयंसि वा कायं उहिया 2 गच्छति / से तं पंकगती 16 / [1121 प्र.] पंकगति का क्या स्वरूप है ? [1121 उ.] जैसे कोई पुरुष कादे में, कीचड़ में अथवा जल में (अपने) शरीर को दूसरे के साथ जोड़कर गमन करता है, (उसकी) यह (गति) पंकगति है / यह हुआ पंकगति (का स्वरूप) / / 16 / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org