________________ 234] [प्रज्ञापनासूत्र [1109 प्र.] वह अनुपसम्पद्यमानगति क्या है ? [1109 उ.] इन्हीं पूर्वोक्त (राजा आदि) का परस्पर आश्रय न लेकर जो गति होती है, वह अनुपसम्पद्यमान गति है। यह हुआ अनुपसम्पद्यमान गति का स्वरूप / / 4 / / 1110. से कि तं पोग्गलगती? पोग्गलगती जण्णं परमाणुपोग्गलाणं जाव अणंतपएसियाणं खंधाणं गती पवत्तति / से तं पोग्गलगती। [1110 प्र.] पुद्गलगति क्या है ? [1110 उ.] परमाणु पुद्गलों की यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्धों को गति पुद्गलगति है। यह हुआ पुद्गलगति का स्वरूप / / 5 / / 1111. से किं तं मंड्यगती ? मंड्यगती जणं मंडूए उफिडिया उम्फिडिया गच्छति / से तं मंड्यगती 6 / [1111 प्र.] मण्डूकगति का क्या स्वरूप है ? [1111 उ.] मेंढ़क जो उछल-उछल कर गति करता है, वह मण्डूकगति कहलाती है / यह हुआ मण्डूकगति (का स्वरूप / ) // 6 // 1112. से कि तं णावागती? जावागती जण्णं णावा पुधवेयालीयो दाहिणवेयालि जलपहेणं गच्छति, दाहिणवेयालीग्रो वा प्रवरवेयालि जलपहेणं गच्छति / से तं णावागती 7 / [1112 प्र.] वह नौकागति क्या है ? [1112 उ.] जैसे नौका पूर्व वैताली (तट) से दक्षिण वैताली की पोर जलमार्ग से जाती है, अथवा दक्षिण वैताली से अपर वैताली की ओर जलपथ से जाती है, ऐसी गति नौकागति है / यह हुआ नौकागति का स्वरूप / / 7 / / 1113. से कि तं जयगती ? णयगती जण्णं णेगम-संगह-ववहार-उज्जुसुय-सह-समभिरूढ-एवंभूयाणं णयाणं जा गती अहवा सव्वणया वि जं इच्छंति / से तं णयगती 8 / [1113 प्र.] नयगति का क्या स्वरूप है ? [1113 उ.] नगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवम्भूत, इन सात नयों की जो प्रवृत्ति है, अथवा सभी नय जो मानते (चाहते या विवक्षा करते) हैं, वह नयगति है / यह हुआ नयगति का स्वरूप / / 8 / / 1114. से कि तं छायागती? छायागती जण्णं यच्छायं वा गयच्छायं वा नरच्छायं वा किन्नरच्छायं वा महोरगच्छायं वा गंधधच्छायं वा उसहच्छायं वा रहच्छायं वा छत्तच्छायं वा उवसंपज्जित्ता णं गच्छति / से तं छायागती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org