________________ सोलहवाँ प्रयोगपद ] [225 एक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होता है, अथबा 16. अनेक औदारिकमिश्रशरीरकाय-प्रयोगी, अनेक पाहारकशरीरकायप्रयोगी, अनेक आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी और अनेक कार्मणशरीरकायप्रयोगी होते हैं / इस प्रकार चतु:संयोगी से सोलह भंग होते हैं / तथा ये सभी (असंयोगी 8, द्विकसंयोगी 24, त्रिकसंयोगी 32 और चतुःसंयोगी 16, ये सब) मिलकर अस्सी भंग होते हैं / / 80 // विवेचन-मनुष्यों में विभाग से प्रयोग-प्ररूपणा-प्रस्तुत सूत्र (1083) में प्रसंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और चतु:संयोगी 80 भंगों के द्वारा मनुष्यों में पाए जाने वाले प्रयोगों की प्ररूपणा की गई है। ___ मनुष्यों में सर्वव पाए जाने वाले ग्यारह पद-मनुष्यों में 15 प्रकार के प्रयोगों में 11 पद (प्रयोग) तो सदैव बहवचन से पाए जाते हैं। यथा-चारों प्रकार के म प्रकार के वचनप्रयोगी तथा औदारिकशरीरकायप्रयोगी और वैक्रियद्विकप्रयोगी (वैक्रियशरीरकायप्रयोगी और वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोगी)। मनुष्यों में वैक्रियमित्र शरीरकायप्रयोग विद्याधरों को अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि विद्याधर तथा अन्य कतिपय मिथ्यादृष्टि आदि वैक्रियलन्धिसम्पन्न अन्यान्यभाव से सदैव विकुर्वणा करते पाए जाते हैं। मनुष्यों में औदारिक मिश्रशरीरकायप्रयोगी और कार्मणशरीरकायप्रयोगी कभी-कभी सर्वथा नहीं भी पाए जाते, क्योंकि ये नवीन उपपात के समय पाये जाते हैं और मनुष्यों के उपपात का विरहकाल बारह मुहूर्त का कहा गया है। आहारक शरीरकायप्रयोगी और आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगी भी कभी-कभी होते हैं, यह पहले ही कहा जा चुका है। अतः औदारिकमिश्र प्रादि चारों प्रयोगों का अभाव होने से उपयुक्त बहुवचन विशिष्ट ग्यारह पदों वाला यह प्रथम भंग है। एकसंयोगी पाठ भंग--ौदारिकमिश्रप्रयोगी एकत्व-बहुत्वविशिष्ट दो भंग, इसी प्रकार पाहारकप्रयोगी दो भंग, आहारक मिश्रप्रयोगी दो भंग, कार्मणशरीरकायप्रयोगी दो भंग, इस प्रकार एक-एक का संयोग करने पर आठ भंग होते हैं। द्विकसंयोगी चौवीस भंग-औदारिकमिश्र एवं प्राहारकपद को लेकर एकवचन-बहुवचन से चार, औदारिकमिश्र तथा प्राहारकमिश्र इन दोनों पदों को लेकर चार, औदारिकमिश्र एवं कार्मा पद को लेकर चार, आहारक और आहारकमिश्र को लेकर चार, पाहारक और कार्मण को लेकर चार, तथा पाहारकमिश्र और कार्मण को लेकर चार, ये सब मिल कर द्विकसंयोगी कुल 24 भंग होते हैं। त्रिकसंयोगी बत्तीस भंग-ौदारिकमिश्र, आहारक और आहारकमिश्र इन तीन पदों के एकवचन और बहवचन को लेकर भंग, औदारिकमिश्र, ग्राहारक और कार्मण इन तीनों के भंग, औदारिक मिश्र, आहारकमिश्र और कार्मण इन तीन पदों के पाठ भंग, और आहारक, आहारकमिश्र और कार्मण इन तीनों पदों के आठ, ये सब मिलकर त्रिकसंयोगी कुल 32 भंग होते हैं। चतुःसंयोगी सोलह भंग-प्रौदारिकमिथ, आहारक, प्राहारकमिश्र और कार्मण, इन चारों पदों के एकवचन और बहुवचन को लेकर सोलह भंग होते हैं। इस प्रकार असंयोगी, द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी और चतुःसंयोगी मिलकर 80 भंग होते हैं।' 1. प्रज्ञापनासूत्र, मलय, वृत्ति, पत्रांक 325 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org