________________ 228] [प्रज्ञापनासूत्र 1086. जीवा णं भंते ! कि सच्चमणप्पप्रोगगती नाव कम्मगसरीरकायप्पमोगगती? गोयमा ! जीवा सम्वे वि ताव होज्जा सच्चमणप्पओगगती वि, एवं तं चेव पुत्ववपिणयं भाणियब्ध, भंगा तहेव जाव वेमाणियाणं / से तं पमोगगती। [1086 प्र.] भगवन् ! जीव क्या सत्यमनःप्रयोगगति वाले हैं, अथवा यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगतिक हैं ? [1086 उ.} गौतम ! जीव सभी प्रकार की गति वाले होते हैं, सत्यमनःप्रयोगगति वाले भी होते हैं, इत्यादि पूर्ववत् करना चाहिए। उसी प्रकार (पूर्ववत्) (नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक कहना चाहिए / यह हुई प्रयोगगति (की प्ररूपणा।) 1060. से कि तं ततगती? ततगती जेणं जं गामं वा जाव सण्णिवेसं बा संपट्टिते प्रसंपत्ते अंतरापहे वट्टति / से तं ततगती। [1060 प्र.] (भगवन् ! ) वह ततगति किस प्रकार की है ? [1090 उ.] (गौतम ! ) ततगति वह है, जिसके द्वारा जिस ग्राम यावत् सनिवेश के लिए प्रस्थान किया हुआ व्यक्ति (अभी) पहुँचा नहीं, बीच मार्ग में ही है / यह है ततगति (का स्वरूप / ) 1061. से किं तं बंधणच्छेयणगती? / बंधणच्छेयणगती जेणं जीवो वा सरीरानो सरीरं वा जीवानो / से तं बंधणच्छेयणगती। [1091 प्र. वह बन्धनछेदनगति क्या है ? [1061 उ.] बन्धनछेदनगति वह है, जिसके द्वारा जीव शरीर से (बन्धन तोड़कर बाहर निकलता है), अथवा शरीर जीव से (पृथक् होता है / ) यह हुआ बन्धनछेदन गति (का निरूपण / ) 1062. से कि तं उववायगती ? उववायगती तिविहा पण्णता / तं जहा-खेतोववायगती 1 भवोक्वायगती 2 णोभवोधयातगती। [1092 प्र.] उपपातगति कितने प्रकार की है ? [1062 उ.] उपपातगति तीन प्रकार की कही गई है। यथा--१. क्षेत्रोपपातगति, 2. भवोपपातगति और 3. नोभवोपपातगति / 1093. से कि तं खेत्तोबवायगती ? खेत्तोक्वायगती पंचविहा पण्णत्ता / तं जहा-जेर इयखेत्तोववातगती 1 तिरिक्खजोणियखेत्तोवधायगती 2 मणूसखेत्तोववातगती 3 देवखेतोववातगती 4 सिद्धखेतोववायगती 5 / [1093 प्र.] क्षेत्रोपपातगति कितने प्रकार की है ? [1093 उ.] क्षेत्रोपपातगति पांच प्रकार की कही गई है। यथा-१. नैरयिकक्षेत्रोषपातगति, 2. तिर्यञ्चयोनिकक्षेत्रोपपातगति, 3. मनुष्यक्षेत्रोपपातगति, 4. देवक्षेत्रोपपातगति और 5. सिद्धक्षेत्रोपपातगति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org