________________ 212] [ प्रज्ञापनासूत्र वैक्रियशरीर का प्रयोग / जब कोई पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य या वायुकायिक जीव वैक्रियशरीरी होकर अपना कार्य सम्पन्न करके कृतकृत्य हो चुकने के पश्चात् बैंक्रियशरीर को त्यागने और औदारिकशरीर में प्रवेश करने का इच्छुक होता है, तब वहाँ वैक्रियशरीर के सामर्थ्य से औदारिकशरीरकाययोग को ग्रहण करने में प्रवृत्त होने तथा वैक्रियशरीर की प्रधानता होने के कारण वह 'औदारिकमिश्र' नहीं, किन्तु बैंक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग कहलाता है / (13) प्राहारकशरीरकायप्रयोग-आहारकशरीर पर्याप्ति से पर्याप्त आहारकलब्धिधारी चतुर्दश पूर्वधरमुनि के अाहारकशरीर द्वारा होने वाला प्रयोग / (14) प्राहारकमिवशरीर कायप्रयोग-आहारकशरीरी संयमी मुनि जब अपना कार्य पूर्ण करके पुनः औदारिकशरीर को ग्रहण करता है, तब आहारकशरीर के बल से औदारिकशरीर में प्रवेश करने तथा आहारकशरीर की प्रधानता होने के कारण प्रौदारिकमिश्रशरीर न कहलाकर आहारकमिश्रशरीर ही कहलाता है / इस प्रकार का प्रयोग पाहारकमिश्रशरीरकायप्रयोग है। (15) कार्मणशरीरकायप्रयोग-विग्रहगति में तथा केवलीसमुद्घात के तीसरे, चौथे और पांचवें समय में होने वाला प्रयोग कार्मणशरीरकायप्रयोग कहलाता है। तेजस और कार्मण दोनों सहचर हैं, अतः एक साथ दोनों का ग्रहण किया गया है।' समुच्चय जीवों और चौवीस दण्डकों में प्रयोग की प्ररूपणा 1066. जीवाणं भंते ! कतिविहे पनोगे पण्णते ? गोयमा! पण्णरसबिहे पओगे पण्णते। तं जहा-सच्चमणप्पप्रोगे जाव कम्मासरीरकायप्पानोगे। [1069 प्र.] भगवन् ! जीवों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे हैं ? [1069 उ. गौतम ! जीवों के पन्द्रह प्रकार के प्रयोग कहे गये हैं। वे इस प्रकार-सत्यमनःप्रयोग से (लेकर) कार्मणशरीरकायप्रयोग तक। 1070. रइयाणं भंते ! कतिविहे पनोगे पण्णते ? गोयमा! एक्कारसविहे पनोगे पण्णत्ते। तं जहा-सच्चमणप्पप्रोगे 1 जाव असच्चामोसवइप्पप्रोगे 8 वेउब्धियसरीरकायप्पनोगे वेउब्वियमीससरीरकायप्पनोगे 10 कम्मासरीरकायप्पमोगे [1070 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने प्रकार के प्रयोग कहे हैं ? [1070 उ.] गौतम ! (उनके) ग्यारह प्रकार के प्रयोग कहे गए हैं / वे इस प्रकार-(१.८) सत्यमनःप्रयोग से लेकर यावत् असत्यामृषावचनप्रयोग, ६-वैक्रियशरीरकायप्रयोग, १०-वैक्रियामश्रशरीरकायप्रयोग और ११-कार्मणशरीरकायप्रयोग। 1071. एवं असुरकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं / [1071] इसी प्रकार असुरकुमारों से (लेकर) यावत् स्तनितकुमारों (तक) के (प्रयोगों के विषय में समझना चाहिए।) 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 319 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org