________________ 202] [ प्रज्ञापनासूत्र सिद्ध हो जाता है तो उसकी आठ द्रव्येन्द्रियाँ होती हैं। जो मनुष्य पृथ्वीकायादि में एक भव के पश्चात् मनुष्य होकर सिद्धिगामी होता है, उसकी 6 इन्द्रियाँ होती हैं / शेष भावना पूर्ववत् समझनी चाहिए। असुरकुमारों को पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ-असुरकुमार के भव से निकलने के पश्चात् मनुष्यत्व को प्राप्त कर जो सिद्ध होता है, उसकी पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ 8 होती हैं / ईशानपर्यन्त एक एक असुरकुमारादि पृथ्वीकाय, अप्काय एवं वनस्पतिकाय में उत्पन्न होता है, वह अनन्तर भव में पृथ्वीकायादि किसी एकेन्द्रिय में जाकर तदनन्तर मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध हो जाता है, उसके नौ पुरस्कृत इन्द्रियाँ होती हैं / संख्यातादि की भावना पूर्ववत् समझनी चाहिए। पृथ्वी अप-वनस्पतिकाय की पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ-पृथ्वीकायादि मर कर अनन्तर मनुष्यों में उत्पन्न होकर सिद्ध होते हैं, उनमें जो अनन्तरभव में मनुष्यत्व को प्राप्त करके सिद्ध हो जाता है, उसकी मनुष्यभव सम्बन्धी आठ इन्द्रियाँ होगीं / जो पृथ्वीकायादि अनन्तर एक पृथ्वीकायादि भव पाकर तदनन्तर मनुष्य होकर सिद्ध हो जाते हैं, उनकी 6 इन्द्रियाँ होगी। तेजस्कायिक-वायुकायिक एवं विकलेन्द्रिय को पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियां तेजस्कायिक और वायुकायिक मरकर तदनन्तर मनुष्यभव नहीं प्राप्त करते / द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव अनन्तर आगामी भव में मनुष्यत्व तो प्राप्त कर सकते हैं, किन्तु सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते, अतएव उनकी जघन्य नौ-नौ इन्द्रियाँ कहनी चाहिए। शेष प्ररूपणा पूर्वोक्तानुसार समझनी चाहिए। सनत्कुमारादि की पुरस्कृत इन्द्रियाँ-सनत्कुमारादि देव च्यव करके पृथ्वीकायादि में उत्पन्न नहीं होते, किन्तु पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं। अतएव उनका कथन नैरयिकों की तरह समझना चाहिए / विजयादि चार को पुरस्कृत इन्द्रियाँ-जो अनन्तरभव में ही मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध होगा, उसकी 8 इन्द्रियाँ होती हैं / जो एक वार मनुष्य होकर पुन: मनुष्यभव पाकर सिद्ध होगा, उसके 16 इन्द्रियाँ होती हैं। जो बीच में एक देवत्व का अनुभव करके मनुष्य होकर सिद्धिगामी हो तो उसके 24 इन्द्रियाँ होती हैं। मनुष्यभव में आठ, देवभव में 8 और पुनः मनुष्यभव में आठ, यों कूल 24 इन्द्रियाँ होगी / विजयादि चार विमानगत देव प्रभूत असंख्यातकाल या अनन्तकाल तक संसार में नहीं रहते। इस कारण उनकी आगामी द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात ही कही हैं, असंख्यात या अनन्त नहीं। सर्वार्थसिद्धदेव की पुरस्कृत इन्द्रियाँ--सर्वार्थसिद्ध विमान के देव नियमतः अगले भव में सिद्ध होते हैं, इस कारण उनकी आगामी द्रव्येन्द्रियाँ 8 ही कही हैं। अनेक मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ-कदाचित संख्यात और कदाचित् असंख्यात होती हैं / इसका कारण यह है कि किसी समय सम्मूच्छिम मनुष्यों का सर्वथा अभाव हो जाता है, उनका अन्तर चौवीस मुहूर्त का है। जब सम्मूच्छिम मनुष्य सर्वथा नहीं होते, तब मनुष्यों की बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ संख्यात होती हैं, क्योंकि गर्भज मनुष्य संख्यात ही होते हैं, किन्तु जब सम्मूच्छिम मनुष्य भी होते है, तब बद्ध द्रव्येन्द्रियां असंख्यात होती हैं। नारक की नारकभव अवस्था में भावी द्रव्येन्द्रियां-किसी नारक की भविष्यत्कालिक द्रव्येन्द्रियाँ होती है, किसी की नहीं। जो नारक नरक से निकलकर फिर कभी नारक पर्याय में उत्पन्न नहीं होगा, उसकी भावी द्रव्येन्द्रियाँ नहीं होती। जो नारक कभी पुनः नारक में उत्पन्न होगा, उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org