________________ 200 ] [प्रज्ञापनासूत्र कवतिया पुरेक्खडा? णत्थि / [1055-1 प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों की नैरयिकत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1055-1 उ.] गौतम ! (वे) अनन्त हैं। [प्र.] (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम !) नहीं हैं। [2] एवं मणसवज्जं जाव गेवेज्जगदेवत्ते। {1055-2] मनुष्य को छोड़ कर यावत् प्रैवेयकदेवत्व तक के रूप में भी इसी प्रकार (इनकी अतीतादि द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता कहनी चाहिए।) [3] मणूसत्ते प्रतीता अणता, बद्धलगा णत्यि, पुरेक्खडा संखेज्जा / [1055-3] (इनकी) मनुष्यत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ अनन्त हैं, बद्ध नहीं हैं, पुरस्कृत संख्यात हैं। जय-वेजयंत-जयंतापराजियदेवत्ते केवतिया दग्विदिया प्रतीता? संखेज्जा। केवतिया बद्धल्लगा? नस्थि / केवतिया पुरेक्खडा? णस्थि / [1055-4 प्र.] विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजितदेवत्व के रूप में इनकी अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1055-4 उ. (वे) संख्यात हैं / [प्र.) (इनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! ) नहीं हैं / [प्र.] उनको पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! ) नहीं हैं। [5] सम्वटुसिद्धगदेवाणं भंते ! सम्वदृसिद्धगदेवत्ते केवतिया व्यिदिया प्रतीता ? णस्थि / केवतिया बद्धलगा? संखेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org