________________ 198] [ प्रज्ञापनासूत्र केवतिया बद्धलगा? णस्थि / केवतिया पुरेक्खडा ? सिय संखेज्जा सिय प्रसंखेज्जा / एवं सवसिद्धगदेवत्ते वि / [1050-3 प्र.] भगवन् ! मनुष्यों की विजय, वजयन्त, जयन्त और अपराजित-देवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [1050-3 उ.] (गौतम ! वे) संख्यात हैं। [प्र.) (उनकी) बद्ध (द्रव्येन्द्रियाँ) कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! ) नहीं हैं। [प्र.] (उनकी) पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ कितनी हैं ? [उ.] (गौतम ! वे) कदाचित् संख्यात हैं, कदाचित् असंख्यात हैं। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धदेवत्वरूप में भी (अतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों को वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए / ) 1051. वाणमंतर-जोइसियाणं जहा रइयाणं (सु. 1048) / [1051] (बहुत-से) वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देवों की अतीत बद्ध पुरस्कृत (द्रव्येन्द्रियों) की वक्तव्यता (नैरयिकत्व से लेकर सर्वार्थ सिद्धदेवत्व रूप तक में सू. 1048 में उक्त) नैरयिकों की (वक्तव्यता के समान जानना चाहिए / ) 1052. सोहम्मगदेवाणं एवं चेव / णवरं विजय-जयंत-जयंत-अपराजियदेवत्ते प्रतीता असंखेज्जा, बल्लगा णस्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा। सम्बटुसिद्धगदेवत्ते अतोता णस्थि, बद्धल्लगा स्थि, पुरेक्खडा असंखेज्जा। [1052] सौधर्म देवों को अतीतादि को वक्तव्यता इसी प्रकार है। विशेष यह है कि विजय, वैजयन्त, जयन्त तथा अपराजितदेवत्व के रूप में अतीत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं, बद्ध नहीं हैं तथा पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं / सर्वार्थसिद्धदेवत्व रूप में अतीत नहीं हैं, बद्ध द्रव्येन्द्रियाँ भी नहीं हैं, किन्तु पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियाँ असंख्यात हैं।। 1053. एवं जाव गेवेज्जगदेवाणं / [1053] (बहुत-से) ईशान देवों से लेकर) यावत् ग्रेवेयकदेवों की (अतीत बद्ध पुरस्कृत द्रव्येन्द्रियों की वक्तव्यता भी) इसी प्रकार (समझनी चाहिए।) 1054. [1] विजय-जयंत-जयंत-अपराजियदेवाणं भंते ! रइयत्ते केवतिया दन्वेंदिया अतीता? गोयमा ! प्रणंता। केवतिया बद्धलगा? णस्थि / केवतिया पुरेक्खडा ? त्थि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org